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Wednesday, May 30, 2012

काश मैं भी चाँद होती



हर रात जब मैं
अपनी बाल्कनी खोलती हूँ तो
चाँद मुस्कुराते हुए
मुझे चिड़ाता है ,
कभी हँसाता है
कभी समझाता भी है ,
कभी नज़रे चुरा कर
हौले से थपकी दे कर
सुला देता है ,
कभी मुझे अकेलापन महसूस हो तो
अपने होने का एहसास दिलाता है ,
कभी कभी तो अपनी चाँदनी
के साथ होने की वजह से बहुत इतरता है
और तब वो पूरा नज़र आता है,
अपनी चाँदनी की रौशनी
हर तरफ बिखेरता है ,
हाँ पर किसी दिन जब वो
मेरे साथ लूका छीप्पी खेलता है तो
फिर लाख ढुंढ़ो कहीं नज़र नही आता ,
काश! मैं  भी चाँद की तरह होती
बस अपनी चाँदनी के साथ
हर हाल मे खुश होती ,
और दूसरो को भी खुश रखती !

रेवा

26 comments:

  1. कोमल भावो की
    बेहतरीन......

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  2. रेवा जी...
    मन के भावों का मंद-मंद झोंका मन प्रसन्न कर गया... बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !

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  3. खूबसूरत एहसास... सुंदर अभिव्यक्ति... प्रशंसनीय प्रस्तुति....

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  4. ये शब्द आपकी चाँदनी ही हैं न ......... ढेर सारी मुस्कान दे गए

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  5. कोमल अभिव्यक्ति .

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  6. कभी मुझे अकेलापन महसूस हो तो , अपना होने का एहसास दिलाता है बहुत सुंदर अभिव्यक्ति ,, रेवा जी

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  7. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति...

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  8. Bahut sundar abhivyakti... Suv Kmanayain.

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  9. उम्दा ...बहुत खूब

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  10. aap sabka bahut bahut shukriya.....

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  11. This comment has been removed by the author.

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  12. mujhe aapka chaand hona bilkul bhi achchha nahi lagta....woh jab aata hai....tab achchha lagta hai...aur jis raat nahi aata...us raat har taraf andhera kar jaata hai...mujhe aap EK TAARE ki tarah hi achchhe lagte ho.....door ho....chhote ho....per aate to roj ho...mere khayaalon mein....meri yaadon mein.....

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  13. बेहद सुन्दर प्रस्तुति

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    Rajpurohit Samaj!
    पर पधारेँ।

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  14. बहुत सुन्दर रचना, बधाई रेवा.

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  15. चाँद कब चांदनी से दूर रहा है
    एहसास की खूबसूरत रचना

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  16. Mukeshji apka blog par swagat hai...bahut bahut shukriya

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