इतने सालों मे
तुने कुछ कहा नहीं मुझसे
पर मैं वो हमेशा सुनती रही
जो सुनना चाहती थी ,
हर जख्म मे मरहम
खुद ही लगाती रही ,
बिना खवाब दिखाए
रोज़ एक नया ख्वाब बुनती रही ,
अश्क बहाती रही
और खुद ही पोछती रही ,
हर नए दिन के साथ
नयी उम्मीद जगाती रही ,
साल बीतते गए
जख्म नासूर बन गए ,
अश्क सुख गए
उम्मीद टूट गयी
दिल जल कर राख़ हो गया ,
हमसफ़र तो हम बन गए
पर हम अकेले सफ़र करते रहे
रेवा
हमसफ़र तो हम बन गए
ReplyDeleteपर हम अकेले सफ़र करते रहे ....
सोच नहीं मिलते तो शरीर साथ हो कर भी मन अकेला ही रह जाता है .... !!
हृदयस्पर्शी पीड़ा की अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत ही सहज शब्दों में कितनी गहरी बात कह दी आपने..... खुबसूरत अभिवयक्ति....
ReplyDeleteJab aisee nirasha samne aatee hai to dil toot hee jata hai...
ReplyDeletebahut sunder prastuti
ReplyDeletedont know rewa ji...in which context u wrote this....but....no expectaion..no pain.....
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya...
ReplyDeletesansac...i would say expectation is human nature..
ReplyDeleteप्रेम की सजा यही तो है ... इकतरफा ...
ReplyDeleteदिल में दबी टीस को बयाँ करती सुन्दर शब्द रचना !!
ReplyDeleteप्रेम एक दर्द ही तो हैं ...
ReplyDeleteshukriya....
ReplyDeleteहमसफ़र तो मिल जाते हैं लेकिन अपनी-अपनी राह पर अकेले चलते हुए... भावपूर्ण रचना, बधाई.
ReplyDeletethanx jenny di
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