ख्यालों मे इतने उफान आ रहे हैं
पर लगता है शब्दों का समुद्र
सूख गया है ,
बस चारो और धुंध ही धुंध है
कुछ साफ नहीं दिख रहा ,
ज़िन्दगी मे आये इस पड़ाव
को पार करना बहुत मुश्किल
हो रहा है ,
लोग तो रूठ कर चले गए
पर अब मेरी कविता
भी मुझसे रूठी बैठी है ,
उसे कैसे बताऊ की
उसके बिना मेरा अस्तित्व
दाँव पर लगा है /
रेवा
पर लगता है शब्दों का समुद्र
सूख गया है ,
बस चारो और धुंध ही धुंध है
कुछ साफ नहीं दिख रहा ,
ज़िन्दगी मे आये इस पड़ाव
को पार करना बहुत मुश्किल
हो रहा है ,
लोग तो रूठ कर चले गए
पर अब मेरी कविता
भी मुझसे रूठी बैठी है ,
उसे कैसे बताऊ की
उसके बिना मेरा अस्तित्व
दाँव पर लगा है /
रेवा
Aap to likhtee rahtee hain...astitv daanv pe nahee na laga!
ReplyDeleteरूठना मनाना तो जीवन का हिस्सा है रेवा.....
ReplyDeleteकविता बेशक रूठे,मगर कहीं जायेगी नहीं...और भी स्नेह के साथ अवतरित होगी देखना...
ढेर सा प्यार..
अनु
अनु जी से बिलकुल सहमत.
ReplyDeleteकैफ़ी आज़मी के शब्दों में कहूं-
लड़खड़ाएगी कहाँ तक कि संभलना है तुझे
उठ मेरी जान! मेरे साथ ही चलना है तुझे
उसे कैसे बताऊँ उसके बिना मेरा अस्तित्व दाँव पर लगा है .....बहुत सुन्दर...
ReplyDeleteरूठना मनाना तो चलता है..
ReplyDeleteकविता भी जल्दी ही मान जाएगी..
सुन्दर भावपूर्ण रचना..
कभी कभी कविता नहीं विचार ही रूठ जाते हैं ..... सुंदर भावभिव्यक्ति
ReplyDeleteबहुत खूबसूरती से अपने भाव परकट किये हैं पर
ReplyDeleteदीदी एसे समय पर अपने विचारो पर काबू रखना पड़ता है
shukriya yashwant bhai
ReplyDeleteभावों का रूठना मनाना तो चलता रहता है और यह कविता भी शीघ्र मान जाएगी... बहुत सुंदर प्रस्तुति...
ReplyDeleteअपने सुन्दर शब्दों के समुद्र को मत सूखने देना..
ReplyDeleteधुँध तो क्षणिक होती है..उनके पार सुनहरा प्रकाश होता है !!
आपका दर्द बयाँ करती हुई सार्थक पंक्तियाँ...
खूबसूरत भाव ......सादर
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDelete