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Sunday, December 2, 2012

तुम ऐसे क्यों हो ?

तुम ऐसे क्यों हो ?
मुझे जिस रिश्ते की जरूरत होती है
तुम वैसे ही कैसे बन जाते हो ?
कभी दोस्त कभी हमसफ़र
कभी प्रेमी ,कभी बचपन का साथी
कैसे निभा लेते हो इतने सारे किरदार ?
क्यों सुन और समझ लेते हो मेरी हर बात
कितना झगड़ती हूँ ,कभी बेमतलब गुस्सा
हो जाती हूँ ,
पर तुम्हारे माथे पर एक शिकन तक नहीं आती
हमेशा मेरी बातें सुन कर हँसते रहते हो ,
कभी सोचती हूँ क्या रिश्ता है मेरा तुम्हारा ?
किस नाम से पुकारू तुम्हे ?
पर नहीं ,शायद हमारे रिश्ते को नाम
देना बेमानी , बेमतलब है ,
ये ऐसा अटूट रिश्ता है
जो किसी नाम ,किसी बंधन
का मोहताज नहीं
ये निर्मल जल जैसा है ,
जो बस बहता रहता है
हमारे एहसासों की नाव लिए ,
और कहता है
"नाव कागज़ की सही
पर डूबेगी नहीं "/



रेवा


15 comments:

  1. Aisa koyi qismatwalon ko hee milta hai!

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  2. ये ऐसा अटूट रिश्ता है

    जो किसी नाम ,किसी बंधनका मोहताज नहीं

    ये निर्मल जल जैसा है , जो बस बहता रहता है

    हमारे एहसासों की नाव लिए ....

    किसी की नज़र ना लग जाए .......... सम्भाल कर रखना !!

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  3. रेवा जी...
    दिल से निकले भावों का बहुत ही प्यारा चित्रण किया आपने !
    सच में..
    जो रिश्ते दिल से जुड़े होते हैं वो नामों के मोहताज़ नहीं होते !!

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  4. This comment has been removed by the author.

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  5. तुम ऐसे क्यो हो?
    इस प्रश्न का कोई जवाब नही है

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  6. bahut sundar sawal...aur aapki racna bhi

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  7. कितनी परितृप्ति देनेवाली कल्पना है!

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