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Wednesday, April 17, 2013

पारो की व्यथा

औरतें हर दिन जीती है ,हर दिन मरती है
रोज़ नयी लड़ाई लडती है ,पर फिर भी कहाँ कुछ बदलता है /
अगर मर्द कुछ करे तो ,उसकी माफ़ी सहज ही मिल जाती है
पर अगर वहीँ औरत ऐसी गलती करे तो वो अपराध , क्यों ?


बहुत प्यार करती थी पारो अपने पति से
तन मन धन से सेवा करती
पति ,घर और बच्चो की,
शारीर कभी साथ देता
कभी नहीं भी ,
फिर भी एक उफ़ तक नहीं करती थी
क्युकी उसे लगता था की उसका पति उससे
बहुत प्यार करता है ,
पर जब एक दिन सच जाना
आँखों से सब देखा
टूट गयी वो ,
आँखों से आंसू की जगह
लहू बहने लगे ,
पति से पुछा तो
समझा बुझा कर चुप करा दिया उसे ,
करती भी क्या ,
कहाँ जाती बच्चों का मुँह
देख कर चुप हो गयी ,
घुलती रही रोज़
टूटती रही रोज़ फिर भी जीती रही ,
न घर वालों ने बात जान कर कुछ कहा
न दोस्तों ने
बल्कि सब ने पारो को ही समझाया ,
पर प्रश्न ये है
अगर गलती पारो ने की होती तो
क्या तब
उसके साथ भी ऐसा ही व्यवहार होता ?


रेवा





9 comments:

  1. बच्चे स्त्री के पैरों की जंजीर बन जाते हैं वो उनके लिए ही सब सहती रहती है ।

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  2. पारो .... एक लड़की .... यही कहानी अधिकतर

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  3. सटीक चित्रण किया है व्यथा का

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  4. बिना गलती के अग्निपरीक्षा देनी पड़ती है .....
    गलती हो तो कल्पना से बाहर की सज़ा तैय कराती है समाज .....

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  5. isiliye to aurat pujniy hai jo auron ke liye jiti hai ...

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  6. भावुक और मार्मिक रचना
    बढ़िया शब्द चित्र

    आग्रह है मेरे ब्लॉग में भी सम्मलित हों

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  7. bhavo ko shbdo me dhalna aur yse sach ka aaina dikhana bahut khub

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