लगने लगा था ऐसा कुछ
जैसे सारे बंधन
तोड़ लिए हैं तुमसे ,
अब कोई फर्क नहीं
पड़ता
बात हो या न हो ,
तुम्हारी सारी तकलीफें
अब तुम्हारी
मेरी सारी कठिनाइयाँ मेरी ,
तेरे सारे सपने तेरे अपने
और मेरे ख्वाब मेरे ,
फिर ऐसा क्यों होता है
एक दूसरे की याद
जाने अनजाने
दोनों की आँखें
नम कर जाती है ?
एक दूसरे के ख्वाबों मे
आना
अब भी क्यों जारी है ?
तुम्हारी तकलीफ भरी आवाज़
मुझे अब भी क्यों बेचैन कर जाती है ,
जब सरोकार ही नहीं
एक दूसरे से
फिर ये व्याकुलता क्यों ?
"कुछ बंधन बिना जोड़े
जुड़ जातें हैं
और टूट कर भी
जुड़े रहते हैं "
रेवा
सुन्दर भाव प्रवाह
ReplyDeleteBahut Sundar Rachna
ReplyDeleteदिल को छू जाती है आपकी रचनाएँ और इस बार भी वही बात। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteसमय बहना समय
ReplyDeleteसिक्का का दो पहलु
हार्दिक शुभकामनायें
भावप्रणव सुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल शुक्रवार (18-07-2014) को "सावन आया धूल उड़ाता" (चर्चा मंच-1678) पर भी होगी।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
Shukriya mayank ji
Deletebahut sundar
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteबहुत खूब...
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