छोटी सी मुनिया
दिल मे डॉक्टर बनने
का अरमान लिए ,
बार-बार स्कूल के
दरवाजे जा खड़ी होती ,
डब-डबाई आँखों से
बस बच्चों को
पढ़ते हुए देखती
और लौट आती
पर पढ़ नहीं पाती ,
उस छोटी सी बच्ची
के कन्धों पर
घर सम्भालने की
जिम्मेदारी जो थी ,
भाई का पढ़ना
ज्यादा जरूरी था
बड़े होकर कमाना
तो उसे ही था ,
मुनिया तो लड़की है
घर के काम-काज़
सीखेगी तभी तो
ब्याह होगा उसका ,
पढ़ कर क्या करेगी ?
चूल्हा चौका करना
और बच्चे पलना
धर्म है उसका ,
न जाने कब पूरा होगा
मुनिया जैसी
गांव मे रेह रही
तमाम बच्चियों का सपना ??
रेवा
आपकी लिखी रचना बुधवार 23 जुलाई 2014 को लिंक की जाएगी...............
ReplyDeletehttp://nayi-purani-halchal.blogspot.in आप भी आइएगा ....धन्यवाद!
shukriya yashoda behen
Deleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (23-07-2014) को "सहने लायक ही दूरी दे" {चर्चामंच - 1683} पर भी होगी।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
shukriya Mayank ji
Deleteएक सच जिसे बिल्कुल सटीक शब्द दिये हैं आपने ... बहुत ही बढिया प्रस्तुति... आभार
ReplyDeleteसुन्दर अहसास ,सुन्दर रचना !
ReplyDeleteकर्मफल |
अनुभूति : वाह !क्या विचार है !
पता नहीं हमारे देश में ऐसी कितनी ही मुनिया के सपने साकार होने से
ReplyDeleteपहले ही टूट जाते होंगे, बहुत सुन्दर सटीक रचना आजके सन्दर्भ में !
बहुत बढ़िया
ReplyDeleteshukriya aap sabka
ReplyDelete