बारिश की बूँदें
प्रकृति का सौन्दर्य
दुगना कर देती है ,
सबका मन हर्षो उल्लास से
भर देती है ,
प्रेमी प्रेमिकाओं के लिए
तो ये बूंदें मानो
वरदान हो ,
पर यही बूँदें
मेरे मन को शीतल
करने की बजाय
अग्न क्यों पैदा
कर रही है,
हर एक गिरती
बूंद के साथ
मन और भारी क्यू हो रहा है ,
क्यों पंछियों की तरह
मैं भी खुश हो कर
दूर गगन मे
नहीं उड़ पा रही ,
वो भी तो अकेले
ही होते हैं हमेशा ,
फिर मैं क्यों नहीं ?
क्यों बरसात मुझे
किसी के साथ और
प्यार की जरूरत महसूस
कराता है ?
"ये आकाश से गिरते बूँदें हैं
या मेरी आँखों के अश्क़
ये आकाश प्यार बरसा रहा है
या मेरा मन अपनी व्यथा "
रेवा
बहुत सुंदर रचना !
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ReplyDeleteअरे वाह क्या खूब कहा है बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ
मज़ा आ गया पढ़ कर !!
कितनी कशिश है इन शब्दों में..
ReplyDeleteआपकी कविताओं की तारीफ़ में कुछ कहना तो अब ऐसा लगता है जैसे सूरज को दिया दिखाना ..
shukriya Sanjay bhai.....par abhi bahut seekhna baki hai
Deleteखूबशूरत अहसास
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteArmaan ji blog par swagat hai apka shukriya
Deleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
ReplyDeleteMayank ji abhar
ReplyDeleteवाह क्या बात है. बहुत ही खूबसूरत
ReplyDeleteBahut khoob...
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ReplyDeleteबेहतरीन ...
aap sabka bahut bahut shukriya
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