जाने क्यूँ .........
कभी-कभी घर का काम
करते -करते कुछ गानों के शब्द
ऐसे मन को छू जातें हैं की
बैठ कर उसे पूरा सुनने को
और उस गीत मे
खो जाने को मन करता है
जाने क्यूँ………
और तब गीत सुनते सुनते
दिल भरने लगता है
आँखों से अविरल आँसू
बहने लगते है
जाने क्यूँ………
मन करता है
तुम्हारे कंधे पर
सर रख कर
रोती रहूँ
आँसुओं से
तुम्हे भिगोती रहूँ
जाने क्यूँ………
भूल जाऊँ
सारे गीले शिकवे
भूल जाऊँ सारे गम
तुम्हारे आगोश मे समाये
बस लेती रहूँ हिचकियाँ
जाने क्यूँ………
मगर माँगा हुआ कुछ नही मिलता
मन को समझाओ
जितना भी बहलाओ
नही समझता
और उलझता है,
क्या तुम ने ही कह दिया है इस दिल से
ज़माने से फ़ुर्सत पा के तुम इस के पास आओगे
और इस के हर बात मान जाओगे
यही सच लगता है
जाने क्यूँ .......?
रेवा