Followers

Thursday, August 28, 2014

जाने क्यूँ .........




जाने क्यूँ .........
कभी-कभी घर का काम
करते -करते कुछ गानों  के शब्द
ऐसे मन को छू जातें हैं की
बैठ कर उसे पूरा सुनने को  
और उस गीत मे
खो जाने को मन करता है
जाने क्यूँ………

और तब गीत सुनते सुनते

दिल भरने लगता है
आँखों से अविरल आँसू
बहने लगते है
जाने क्यूँ………

मन करता है

तुम्हारे कंधे पर
सर रख कर
रोती रहूँ
आँसुओं से
तुम्हे भिगोती रहूँ
जाने क्यूँ………

भूल जाऊँ

सारे गीले शिकवे
भूल जाऊँ सारे गम
तुम्हारे आगोश मे समाये
बस लेती रहूँ हिचकियाँ
जाने क्यूँ………


मगर माँगा हुआ कुछ नही मिलता
मन को समझाओ 
जितना भी बहलाओ
नही समझता 
और उलझता है,
क्या तुम ने ही कह दिया है इस दिल से
ज़माने से फ़ुर्सत पा के तुम इस के पास आओगे
और इस के हर बात मान जाओगे
यही सच लगता है
जाने क्यूँ .......?

रेवा


Saturday, August 23, 2014

जुड़ाव


वो जो ऊपर बैठा है न
जाने कैसे कैसे खेल रचता है ......
अचानक किस-किस से मिला
देता है ,
जीवन यूँ भी तो जीते रहते थे हम
उतार चढ़ाव सहते रहते थे हम
पर जाने क्यों
कभी किसी ऐसे
इंसान से मिला देता है की
लगता है आज तक कैसे
जी रहे थे हम ,
उसके साथ की तब
हर मोड़ पर जरूरत
महसूस होने लगती है,
समझ ही नहीं आता
इतने दिनों कैसे संभाल
रहे थे हम ,
चाह कर भी उस इंसान से
दुरी नहीं बना पाते,
शायद जुड़ाव सिर्फ
जरूरत से नहीं
बल्कि एहसासों से
कर लेते हैं हम .............

"दिल की ये कैसी हसरत हो गयी
तेरी मुझे ये कैसी आदत हो गयी
यूँ मिलने को तो मिल जाते हैं कई लोग
पर तू रूह से जुड़ा है
तुझसे मुझे मुहब्बत हो गयी "

रेवा

Saturday, August 16, 2014

मनुहार





तेरे प्यार मे ओ कान्हा !
भूल गयी मैं आना - जाना
एकटक बस निहारती हूँ तुझको
जाने कैसे आकर्षण मे
बांध लिया है मुझको ,

जब - जब तू हो जाता है उदास
बंद हो जाती है
मेरी भी भूख प्यास ,
बार - बार करती रहती हूँ मनुहार
होंठ लगा बाँसुरी
मुस्कुरा दे तू एक बार,

बस आज कर दे तू ये कमाल
तो ज़िन्दगी भर के लिए
मैं हो जाऊँ निहाल……………

रेवा

Thursday, August 14, 2014

परवरिश या परिवेश

हम सभी माँ बाप अपने बच्चों से बहुत प्यार करते हैं.…उन्हें हर ख़ुशी देने की कोशिश करते हैं ....... खास कर के वो ख़ुशी जिससे बचपन में हम महरूम रहे हों .....…बच्चे एक बार को हमे तकलीफ दे भी दे , पर हम कोशिश करते हैं की उन्हें कम से कम तकलीफ हो ....... पर कई बार बच्चे हमारे इस प्यार का नाजायज़ फ़ायदा भी उठाते हैं,जब उन्हें  ये लगता है की उनके लिए हमारा प्यार हमारी कमज़ोरी ,वो अच्छी तरह सीख  लेते हैं बातों के जाल बुनना और भावुक कर के अपनी बात मनवाना  और तब शायद ये प्यार उनके लिए ज़ेहर बन जाता है......उन्हें समझाने का कोई फ़ायदा ही नहीं होता उस समय। कुछ सुनने को तैयार ही नहीं होते …… हम माँ बाप की मुश्किलें यहीं नहीं खत्म होती , आजकल फेसबुक और वॉटसअप के ज़माने मे बच्चों  को सम्भालना और समझाना दोनों ही मुश्किल हो गया है....... दोष इसमे भी हमारा है,क्यों बनाने दिया अकाउंट फेसबुक पर क्यों दिलाया  मोबाइल ?जवाब कुछ नहीं होता क्युकी वो  हमे भी पता नहीं होता बच्चों की किस बात मे आकर हमने ये करने दिया,और जब देखते हैं कुछ नहीं कर पा रहे तब  फिर रास्ता बचता है सख्ती का....…शायद देर कर देते हैं हम ………क्युकी ऐसा करने से  दिल दुखता तो है ही साथ साथ डर भी लगता है की कहीं सख्ती के कारण बच्चा कुछ कर न ले ……  समझ नहीं आता  कमी कहाँ रह जाती है …"हमारी परवरिश मे या आज के परिवेश मे " या बच्चे होते ही ऐसे हैं ? या गलती हमारी ही होती है।


रेवा 

Wednesday, August 6, 2014

सीली यादें



आहा !
प्यार भरी वो बारिश
सदा याद रहेगी मुझ को
जी भरकर भीगे थे हम
हर लम्हा हर पल
जीया था हमने
इन्द्रधनुषी सपने जैसा

पर बरसात के मौसम की तरह
तुम भी अब गुम हो गए हो कहीं
कई मौसम आये गए
पर तुम न आये
अब तो बस
रह गयी है
कुछ सीली यादें

अलमारियों में
बंद तुम्हारे खतों में अब
फफूँद लग गयी है
जिसे हर बरसात के
बाद साफ़ कर धूप में
रख देती हूँ ...

दिल की दीवारों से भी अब
पपड़ी बन झड़ने लगी है
तुम्हारी यादें और
धब्बे नज़र आने लगे हैं

मैंने सोचा उन पर
वास्तविकता
का रंग लगा दूँ
पर दोबारा उन पर
कोई भी रंग
क्यों न चढ़ा लो
वो अपने होने का एहसास
करवा ही देते हैं.…

और किसी न किसी
रूप में बनी रहती
हैं ये यादें

रेवा