वो जो ऊपर बैठा है न
जाने कैसे कैसे खेल रचता है ......
अचानक किस-किस से मिला
देता है ,
जीवन यूँ भी तो जीते रहते थे हम
उतार चढ़ाव सहते रहते थे हम
पर जाने क्यों
कभी किसी ऐसे
इंसान से मिला देता है की
लगता है आज तक कैसे
जी रहे थे हम ,
उसके साथ की तब
हर मोड़ पर जरूरत
महसूस होने लगती है,
समझ ही नहीं आता
इतने दिनों कैसे संभाल
रहे थे हम ,
चाह कर भी उस इंसान से
दुरी नहीं बना पाते,
शायद जुड़ाव सिर्फ
जरूरत से नहीं
बल्कि एहसासों से
कर लेते हैं हम .............
"दिल की ये कैसी हसरत हो गयी
तेरी मुझे ये कैसी आदत हो गयी
यूँ मिलने को तो मिल जाते हैं कई लोग
पर तू रूह से जुड़ा है
तुझसे मुझे मुहब्बत हो गयी "
रेवा
आपकी समस्त रचनायें बेहतरीन हैं , आ. धन्यवाद !
ReplyDeleteI.A.S.I.H - ( हिंदी में समस्त प्रकार की जानकारियाँ )
बहुत ही बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति.
ReplyDeleteइस पोस्ट की चर्चा, रविवार, दिनांक :- 24/08/2014 को "कुज यादां मेरियां सी" :चर्चा मंच :चर्चा अंक:1715 पर.
shukriya Rajeev ji
Deleteकभी-कभी ऐसा भी होता है !
ReplyDeleteसुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteऊपरवाला और प्रेम - दोनों होकर भी अदृश्य, और एक शक्ति
ReplyDeleteबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeletebahut sundar
ReplyDeleteआपकी इस रचना का लिंक दिनांकः 25 . 8 . 2014 दिन सोमवार को I.A.S.I.H पोस्ट्स न्यूज़ पर दिया गया है , कृपया पधारें धन्यवाद !
ReplyDeleteshukriya ashish ji
Deleteबहुत भावपूर्ण...
ReplyDeleteहोता है-होता है... :)
ReplyDeleteबहुत सुंदर लगी आपकी रचना
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
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