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Wednesday, November 26, 2014

इन चार कन्धों की सवारी


पड़ा था कफ़न मे लिपटा
चार कन्धों पर जाने को तैयार ,
रो रहे थे सारे अपने
पर वो था इन सब से अनजान ,
सजा धजा कर
कर रहे थे तैयारी ,
निकलनी थी आज उसकी
इन चार कन्धों की सवारी .......


कल मेरी भी जाने की आएगी बारी
पर फिर भी इस सच से अनजान ,
मैं इस जीवन के
झूठ - सच ,लालच ,
जलन ,मेरा तेरा
और न जाने ऐसे ही कितनी चीज़ों मे ,
करती हूँ अपने आप को
उलझाने की तैयारी ,
जानते हुए भी की
पड़ी रहूंगी एक दिन मैं भी ,
करने को
इन चार कन्धों की सवारी …………

रेवा

10 comments:

  1. आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल शुक्रवार (28.11.2014) को "लड़ रहे यारो" (चर्चा अंक-1811)" पर लिंक की गयी है, कृपया पधारें और अपने विचारों से अवगत करायें, चर्चा मंच पर आपका स्वागत है।

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  2. yah to hona hi hai ....yah duniya hai hi char din ka mela ....

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  3. यही शाश्वत सत्य है जिससे हम जान कर भी अनजान बन जाते हैं...

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  4. जी ऍम जन कटे हुए भी अंजन रहना चाहते हैं

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  5. सुन्दर प्रस्तुति...

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