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Tuesday, January 13, 2015

मैं

आज पता नहीं क्या हुआ ?
पर बहुत दिनों बाद
खुद से मुलाकात हुई
थोड़ी ही सही
पर अपने आप से
बात हुई

खुश हुई
रोई भी बहुत
पर अंत तः
एक शून्य सा
महसूस हुआ
जिसमे न कोई सोच
न गिला न शिकवा

पर ये शुन्य
अन्दर तक
सुकून दे गया मुझे,
लेकिन ये क्या
अगले ही क्षण
फिर शुरुआत हो गयी
एक नए मैं की…

रेवा

22 comments:

  1. सार्थक प्रस्तुति।
    --
    आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (14-01-2015) को अधजल गगरी छलकत जाये प्राणप्रिये..; चर्चा मंच 1857 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    उल्लास और उमंग के पर्व
    लोहड़ी और मकरसंक्रान्ति की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ...
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. मै के बिना शून्य विस्तार लेता है...सुन्दर रचना...

    - वाणभट्ट

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  3. कुछ क्षणों के लिए भी स्वयं से मुलाक़ात होना बहुत बड़ी बात है.... वैसे प्रकृति का नियम ऐसा ही है कि "मै " बार बार सर उठाकर सामने आ जाता हाइया ॥ सुंदर रचना ...

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  4. शब्दों का महाजाल स्वयं को समझने में कम ही मदद करता है लेकिन शुरुआत तो इसी से करनी पड़ती है....शब्दों के माध्यम से खुद की तलाश बहुत अच्छी लगी बहुत सुंदर कविता लिखी है आपने

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  5. मैं के बिना जिंदगी भी कहाँ रह पाती है ... जरूरी है खुद का एहसास होना ...

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  6. बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  7. Bahut sunder yun b kabhi aapne aap se milna acha lagta...

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  8. रेचन हो गया.
    सुकून देता है आसुओं का सैलाब.

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  9. आज 22/जनवरी/2015 को आपकी पोस्ट का लिंक है http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
    धन्यवाद!

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