जाने क्यों
पर भटकती रही
सदा प्यार के लिए….
प्यार नज़र भी आया
पर हंसी आई ये जान कर की
प्यार भी सहुलियत के हिसाब से
किया जाता है …
फ्री हैं तो प्यार जाता दिया
मसरूफ हुए तो ठुकरा दिया
उफ्फ्फ !!
जब ज़िन्दगी मे
खालीपन महसूस हुआ
तो याद आया फिर वही प्यार ....
और उस प्यार को वहां न पा कर
बेवफा और न जाने
क्या क्या उपनाम दिया....
वाह !
खुद को सच्चा
और प्यार को बदनाम किया …
हुँह !
"खुद हुए मसरूफ
और बेवफ़ा मुझे नाम दिया ,
चल दिए दामन छुड़ा कर
और बेमानी मेरा प्यार हुआ "!!!!!!!
रेवा
Bahut sundar rachna.....
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteअच्छी है ।
ReplyDeleteshukriya sushil ji
Deleteshukriya yashoda behen
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुती का लिंक 23 - 07 - 2015 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2045 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
aabhar dilbag ji
Deleteप्यार को कोई भी नाम मिले पर फ़िर भी प्यार तो प्यार ही रहता हैं । जब बदनामी का ड़र हो तो प्यार मत करों ...
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
सुन्दर
ReplyDeleteshukriya kavita ji
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteदो अजनबी !
शायद सहूलियत को प्यार नहीं स्वार्थ जरूर कह सकते हैं ... पर कुछ असलियत भी होती है आज ऐसे प्यार में ...
ReplyDeletesahi kaha digamber ji shukriya
Deleteबहुत खूब! सुदर भाव
ReplyDeleteshukriya madan mohan ji
Deleteबेमानी प्यार ........जैसे बेईमानी प्यार में......बहुत कुछ कह दिया आसानी से। सुन्दर
ReplyDeleteshukriya shiv raj ji
DeleteBilkul sahi baat..,sundar abhivyakti..
ReplyDeleteseema ji blog par apka swagat hai....shukriya
ReplyDeleteमन के भाव को शब्दों में लिखा है ... कभी कभी किसी का अहम कोई गरूर ये रिश्ता तोड़ने को प्रेरित करता है
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