रोटी को गोल
बनाते बनाते
मेरी ज़िन्दगी भी जैसे
गोल हो गयी है………
हांथों मे बचा हैं तो बस
इधर उधर चिपका
गीला आटा.……
बेमतलब बेमानी रिश्तों की तरह
जिसे धो कर साफ़
करना है.…
फिर भरना जो है
रिश्तों की ऊष्मा से
और ये क्रम यूँही
चलता रहेगा
उसी गोल रोटी की तरह…
रेवा
ओह्ह्ह्ह !!!....बहुत सुन्दर....!!!
ReplyDeletesmita ji blog par swagat hai apka...bahut bahut shukriya
Deleteमैं तो कहूँगा की जबरदस्त रचना है
ReplyDeleteधन्यवाद
shukriya shiv raj ji
Deleteलाजवाब बिम्ब से रचना के विषय को बाखूबी पकड़ा है ...
ReplyDeleteshukriya Digamber ji
Deleteआपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-07-2015) को "मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है" (चर्चा अंक-2030) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सादर...!
aabhar mayank ji
Deleteबहुत सुन्दर बिम्ब के साथ अनूठी रचना..
ReplyDeleteसु्न्दर शब्द रचना
ReplyDeletehttp://savanxxx.blogspot.in
मर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ
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