शाम का मंज़र
कितना सुहाना होता न ,
मन मोह लेता है
सारे पंछी अपने
घरोंदों की तरफ
उड़ान भरते हैं ,
सूरज भी थकाहारा
अपने घर लौटने की
तैयारी में रहता है ,
पर मुझे ये शाम
खाली
सुनसान सा
प्रतीत होता है ,
भरी है तो बस
ये आँखें
जिसके कारन सब धुंधला
नज़र आ रहा है ,
सोचती हूँ
आज
बहने देती हूँ इन्हे ,
ताकि ये साफ़ हो सके ,
और फिर
देख सके
जीवन का
सुहाना मंज़र ………
रेवा
बहुत ही सुंदर शब्द सृजन।
ReplyDeleteshukriya kamlesh ji
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteshukriya yashoda behen
Deleteसुहाने सफ़र के लिए इन आंसुओं का भी योगदान होता ही है
ReplyDeleteprabhat bhai shukriya
Deleteसुन्दर शब्द रचना
ReplyDeleteshukriya savan ji
Deleteकम शब्दों मिएँ गज़ब की बात कहने की अदा है आपकी ... लाजवाब ...
ReplyDeleteshukriya digamber ji
Deleteसुंदर रचना..
ReplyDeleteएक नई दिशा !
shukriya rashmi ji
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteshukriya onkar ji
Deleteshukriya dilbag ji
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