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Tuesday, November 22, 2016

शाम का मंज़र





शाम का मंज़र
कितना सुहाना होता न ,
मन मोह लेता है
सारे पंछी अपने
घरोंदों की तरफ
उड़ान भरते हैं ,
सूरज भी थकाहारा
अपने घर लौटने की
तैयारी में रहता है ,
पर मुझे ये शाम
खाली
सुनसान सा
प्रतीत होता है ,
भरी है तो बस
ये आँखें
जिसके कारन सब धुंधला
नज़र आ रहा है  ,
सोचती हूँ
आज
बहने देती हूँ इन्हे ,
ताकि ये साफ़ हो सके ,
और फिर
देख सके
जीवन का
सुहाना मंज़र ………

रेवा



15 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" बुधवार 23 नवम्बर 2016 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. सुहाने सफ़र के लिए इन आंसुओं का भी योगदान होता ही है

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  3. सुन्दर शब्द रचना

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  4. कम शब्दों मिएँ गज़ब की बात कहने की अदा है आपकी ... लाजवाब ...

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  5. बहुत सुन्दर

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