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Saturday, April 22, 2017

सात फेरे







सात फेरों से 
शुरू हुआ 
जीवन का ये सफर ,
सात फेरे 
सात जनम के लिए
सात वचनों से गढ़े
सात गांठों मे बंधे ,
हम दोनों ने पूरी की

ये सारी रस्में ,
निभाते रहे हम
हर एक वचन मे 

अनगिनत वचन
ता उम्र नही खोली कोई
भी गाँठ ,
पर जब अंतिम वचन
कि बात आई
तो तुमने खोल ली
अपनी गांठ
चले गए अकेले
छोड़ मुझे अपनी
यादों के साथ ,
पर अब वहां करना
मेरा इंतज़ार
अगले जन्म
फिर तुमसे करनी है मुलाकात !!!!  


रेवा 

14 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. गाँठ का खुलना और चले जाना अपने हाथ में नहीं होता है। सुन्दर भाव।

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  4. अंतिम गांठ जीवन का अटल सत्य है ,जो कभी न कभी अवश्य खुलेगी ,पुनः कोई नई गांठ बँधेगी ,सुन्दर मार्मिक वर्णन ,आभार।

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  5. मार्मिकता को सरलता की ओढ़नी के साथ कैसे पेश किया जाय यही सन्देश है इस रचना का जोकि नवोदित रचनाकारों को एक सीख भी है। न्यूनतम शब्दों में जनम-जनम की कहानी समा जाय यही कविता बनकर उद्वेलित करती है हमारे मन को। बधाई।

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  6. जहाँ अपना वश नहीं, वहाँ रुक कर आगे की प्रतीक्षा भी तो गाँठ में बँधी है .अब अगली बार अगला फेरा फिर से ...

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    1. waah kya baat kahi apne ......is tarah say to socha hi nahi ....

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  7. शुरुआत से के हर शब्द से प्रेम झांक रहा है ... बेहद लाजवाब लिखा है आपने ... आप इस तरह लिखती रहे....शुभकामनायें !!

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