सात फेरों से
शुरू हुआ
जीवन का ये सफर ,
सात फेरे
सात जनम के लिए
सात वचनों से गढ़े
सात गांठों मे बंधे ,
हम दोनों ने पूरी की
ये सारी रस्में ,
निभाते रहे हम
हर एक वचन मे
अनगिनत वचन
ता उम्र नही खोली कोई
भी गाँठ ,
पर जब अंतिम वचन
कि बात आई
तो तुमने खोल ली
अपनी गांठ
चले गए अकेले
छोड़ मुझे अपनी
यादों के साथ ,
पर अब वहां करना
मेरा इंतज़ार
अगले जन्म
फिर तुमसे करनी है मुलाकात !!!!
रेवा
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteshukriya onkar ji
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 23 अप्रैल 2017 को लिंक की गई है.... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteabhar digvijay ji
Deleteगाँठ का खुलना और चले जाना अपने हाथ में नहीं होता है। सुन्दर भाव।
ReplyDeletesach kaha ...shukriya
Deleteअंतिम गांठ जीवन का अटल सत्य है ,जो कभी न कभी अवश्य खुलेगी ,पुनः कोई नई गांठ बँधेगी ,सुन्दर मार्मिक वर्णन ,आभार।
ReplyDeletesach.....shukriya
Deleteabhar mayank ji
ReplyDeleteमार्मिकता को सरलता की ओढ़नी के साथ कैसे पेश किया जाय यही सन्देश है इस रचना का जोकि नवोदित रचनाकारों को एक सीख भी है। न्यूनतम शब्दों में जनम-जनम की कहानी समा जाय यही कविता बनकर उद्वेलित करती है हमारे मन को। बधाई।
ReplyDeleteshukriya ravindra ji
Deleteजहाँ अपना वश नहीं, वहाँ रुक कर आगे की प्रतीक्षा भी तो गाँठ में बँधी है .अब अगली बार अगला फेरा फिर से ...
ReplyDeletewaah kya baat kahi apne ......is tarah say to socha hi nahi ....
Deleteशुरुआत से के हर शब्द से प्रेम झांक रहा है ... बेहद लाजवाब लिखा है आपने ... आप इस तरह लिखती रहे....शुभकामनायें !!
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