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Monday, January 22, 2018

हॉस्पिटल

ये शब्द सुनते ही
ज़हन में एक डर
पैदा होता है,
लगता है भगवान न करे
वहां कभी जाना पड़े
पर जब कलपुरजों  में
तकलीफ़ होती है तो
पैर खुद ब खुद वहां
पहुंच जाते हैं
राहत देने के लिए
इस संस्था का निर्माण हुआ था
पर व्यवस्था को इतना
जटिल बना देते हैं कि
आम आदमी उलझ कर
रह जाता है
यहां पर भी जान पहचान की
महिमा का गुण गान होता है
आपकी पहचान जरूर
होनी चाहिए नहीं तो
ऊंचे पद पर तो हों ही आप
अगर ये सब है तो
आपकी बल्ले बल्ले
अगर नही तो जनाब
हस्पताल में भर्ती
करने और इलाज़ से लेकर
वहां से मुक्त होने में
आपके पसीने छूट जाएंगे
कुल मिला कर जोड़ घटा कर
ये हिसाब बना की
राहत देने से
लेकर परेशान करने तक और
आपके पॉकेट में बड़ा सा
छेद करने तक का सारा काम
ये पूरा करते हैं !!

रेवा

9 comments:


  1. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'मंगलवार' २३ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-01-2018) को "महके है दिन रैन" (चर्चा अंक-2858) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. nice lines, looking to convert your line in book format publish with HIndi Book Publisher India

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  4. This comment has been removed by the author.

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