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Wednesday, January 31, 2018

चिड़ियाँ

मेरे आंगन के कोने में
एक बहुत प्यारी छोटी
कोमल सी चिड़ियाँ ने
घोंसला बनाया था
मैं जब भी आंगन में बैठती
वो फ़ुर्र उड़ कर आ जाती
फुदकती रहती और
अपनी ची ची
से मन मोह लेती
पूरा घर उसकी
हरकतों से ज़िन्दगी
से भर जाता 

पर ये पता न था की
कोई और भी नज़र
रखे हुए है इन सब पर
एक दिन मेरी बैठे बैठे
आँख लग गयी
तभी एक कौवा आया
चिड़ियाँ को मुंह में दबाने की
कोशिश करने लगा
उसकी दर्द भरी आवाज़ से
मेरी तंद्रा भंग हुई
किसी तरह चिड़ियाँ को बचाया
उसके घाव पर मरहम लगाया
पर वो डरी सहमी उड़ना कम
कर दिया
मेरे आस पास ही फुदकती थी
लगा उसे उठा कर पिंजरे में
डाल दूं, ताकि वो सुरक्षित रहे
पर ऐसा नही किया
उसके पंख, पंजो
और चोंच को फिर से
मजबूत करना शुरू किया
उसे हाथ में उठा उड़ा देती
धीरे धीरे उसने
डरना छोड़ दिया
अब वो उन्मुक्त हो
उड़ती है आकाश में
बिना रुके बिना थके
बिना डरे ....

रेवा

13 comments:

  1. प्यार की भाषा सभी जीव आसानी से समझ जाते हैं
    मर्मस्पर्शी प्रस्तुति

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    Replies
    1. जी कविता जी शुक्रिया

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  2. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन सुरैया और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (02-02-2018) को "सरस रहा मधुमास" (चर्चा अंक-2867) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. आपको जन्मदिन की बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं

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    Replies
    1. शुक्रिया कविता जी

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  5. वाह
    बहुत सुंदर रचना
    बधाई

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  6. Its such a wonderful post, keep writing
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