ज़िन्दगी जीते हैं
अच्छी हो या बुरी
मैं भी जी रही थी
अपने हालात को
अपनी नियति मान
समझौता करते हुए
हर मौसम एक सी
रहते रहते
खुद को पत्थर ही
समझने लगी थी
लेकिन अचानक एक दिन
एक टिमटिमाते
सितारे ने मेरी उंगली
थाम ली
पहले उसने आसमान
की सैर करवाई
और फिर ले गया
मुझे चाँद की दूधिया
रौशनी के सफर पर
उदासी हो या ख़ुशी
या हो कोई मुसीबत
वो सितारा मेरा माथा
चूमता है और
मुझे चाँद की
रौशनी से भर देता है
कभी हकीक़त के
तल्ख़ हवा से रूबरू
करवाता है और कभी
सपनों के आसमान में
मेरा हाथ थामे
निकल पड़ता है
अनंत की सैर पर
पत्थर को मोम बनते
देखा है कभी
मैंने देखा भी है
और महसूस भी किया है
#रेवा
#रेवा