रही थी
एक पन्ने पर आ कर
ठहर गयी
आगे बढ़ ही नहीं पाई
बुक मार्क लगाया और
सो गई
उस पन्ने का हर शब्द
हमारे इश्क़ को
बयां कर रहा था
जिसे पढ़ कर
तुम्हारी याद
बेतरह आने लगी
बताओ ज़रा तुम्हारी
यादों से आगे कैसे बढ़ जाऊँ
कैसे यादों से भरे उस
पन्ने को पलट दूं
वो बुक मार्क लगी किताब
आज भी उसी तरह
पड़ी है मेरे साइड टेबल पर
और तुम्हारी याद वैसे ही
हमारे मिलने के तारीखों
के बुक मार्क के साथ मेरे
दिल पर....
#रेवा
आभार मयंक जी
ReplyDeleteभावपूर्ण ,अत्यंत सुंदर रचना ,सादर
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 22 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteशुक्रिया yashoda बहन
Deleteखूब !
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteशुक्रिया
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