ज़िन्दगी जीते हैं
अच्छी हो या बुरी
मैं भी जी रही थी
अपने हालात को
अपनी नियति मान
समझौता करते हुए
हर मौसम एक सी
रहते रहते
खुद को पत्थर ही
समझने लगी थी
लेकिन अचानक एक दिन
एक टिमटिमाते
सितारे ने मेरी उंगली
थाम ली
पहले उसने आसमान
की सैर करवाई
और फिर ले गया
मुझे चाँद की दूधिया
रौशनी के सफर पर
उदासी हो या ख़ुशी
या हो कोई मुसीबत
वो सितारा मेरा माथा
चूमता है और
मुझे चाँद की
रौशनी से भर देता है
कभी हकीक़त के
तल्ख़ हवा से रूबरू
करवाता है और कभी
सपनों के आसमान में
मेरा हाथ थामे
निकल पड़ता है
अनंत की सैर पर
पत्थर को मोम बनते
देखा है कभी
मैंने देखा भी है
और महसूस भी किया है
#रेवा
#रेवा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा बहन
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3596 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
आभार
Deleteबहुत सुंदर सृजन।
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteबहुत ही सुंदर
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