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Tuesday, January 28, 2020

पत्थर




सब अपनी अपनी
ज़िन्दगी जीते हैं 
अच्छी हो या बुरी 

मैं भी जी रही थी 
अपने हालात को
अपनी नियति मान
समझौता करते हुए 
हर मौसम एक सी 
रहते रहते
खुद को पत्थर ही 
समझने लगी थी

लेकिन अचानक एक दिन 
एक टिमटिमाते 
सितारे ने मेरी उंगली
थाम ली 
पहले उसने आसमान 
की सैर करवाई 
और फिर ले गया 
मुझे चाँद की दूधिया 
रौशनी के सफर पर 

उदासी हो या ख़ुशी 
या हो कोई मुसीबत 
वो सितारा मेरा माथा 
चूमता है और 
मुझे चाँद की 
रौशनी से भर देता है
कभी हकीक़त के 
तल्ख़ हवा से रूबरू 
करवाता है और कभी 
सपनों के आसमान में 
मेरा हाथ थामे 
निकल पड़ता है 
अनंत की सैर पर

पत्थर को मोम बनते 
देखा है कभी 
मैंने देखा भी है 
और महसूस भी किया है

#रेवा 

7 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 29 जनवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 30.1.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3596 में दिया जाएगा । आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ाएगी ।

    धन्यवाद

    दिलबागसिंह विर्क

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  3. बहुत सुंदर सृजन।

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  4. बहुत ही सुंदर

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