मुझे मलाल है की
मैं बुलंदियों को छू ना पाई पर ये तस्सली भी है
कि जितना कुछ
हासिल किया अपने दम
पर हासिल किया
कभी किसी का सीढ़ी
की तरह इस्तेमाल नहीं किया
मैं जानती हूँ
मैं जहाँ हूँ वहां पहुँचना
दूसरों की लिए
चुटकियों की बात होगी
पर मैं संतुष्ट हूँ ख़ुद से
और यही संतुष्टि हर किसी के
बस की बात नहीं
आपका ओहदा आपकी बुलंदी
आपको बहुत मुबारक
मेरी संतुष्टि मुझे प्यारी है
हाँ एक बात और कहना चाहती हूँ
मुझसे जब भी मिलें
अपने ओहदे की पैरहन
उतार के मिले
क्योंकि मैं मुलाकात
इन्सान से करना पसंद करती हूँ
चुटकियों की बात होगी
पर मैं संतुष्ट हूँ ख़ुद से
और यही संतुष्टि हर किसी के
बस की बात नहीं
आपका ओहदा आपकी बुलंदी
आपको बहुत मुबारक
मेरी संतुष्टि मुझे प्यारी है
हाँ एक बात और कहना चाहती हूँ
मुझसे जब भी मिलें
अपने ओहदे की पैरहन
उतार के मिले
क्योंकि मैं मुलाकात
इन्सान से करना पसंद करती हूँ
ओहदे से नहीं
#रेवा
होना भी यही चाहिये । सु न्दर सृ जन
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteसार्थक रचना।
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को "समय व्यतीत करने के लिए" (चर्चा अंक-3808) पर भी होगी।
ReplyDelete--
श्री गणेशोत्सव की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
आभार
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 29 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा बहन
Deleteबहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन
ReplyDeleteवाह!!!
बहुत शुक्रिया आपका
Deleteआदरणीया रेवा जी, आपने अपनी अतुकांत रचना में बहुत बेबाकी से इंसान को इंसान से सहज रूप में मिलने की शर्तों को रेखांकित किया है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteबहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! अंतिम पंक्तियाँ दिल जीत ले गयीं !
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteसुन्दर और सटीक रचना
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteबढ़िया लाइनें
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
Deleteवाह, सुन्दर
ReplyDeleteबहुत शुक्रिया आपका
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