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Friday, August 28, 2020

ओहदा



मुझे मलाल है की 
मैं बुलंदियों को छू ना पाई
पर ये तस्सली भी है
कि जितना कुछ
हासिल किया अपने दम
पर हासिल किया
कभी किसी का सीढ़ी
की तरह इस्तेमाल नहीं किया

मैं जानती हूँ 
मैं जहाँ हूँ वहां पहुँचना
दूसरों की लिए   
चुटकियों की बात होगी 

पर मैं संतुष्ट हूँ ख़ुद से
और यही संतुष्टि हर किसी के
बस की बात नहीं

आपका ओहदा आपकी बुलंदी
आपको बहुत मुबारक
मेरी संतुष्टि मुझे प्यारी है 
हाँ एक बात और कहना चाहती हूँ
मुझसे जब भी मिलें
अपने ओहदे की पैरहन
उतार के मिले
क्योंकि मैं मुलाकात
इन्सान से करना पसंद करती हूँ 
ओहदे से नहीं 

#रेवा 

22 comments:

  1. होना भी यही चाहिये । सु न्दर सृ जन

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  3. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (30-08-2020) को    "समय व्यतीत करने के लिए"  (चर्चा अंक-3808)    पर भी होगी। 
    --
    श्री गणेशोत्सव की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
    --

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  4. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 29 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. बहुत ही सुन्दर सार्थक सृजन
    वाह!!!

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  6. आदरणीया रेवा जी, आपने अपनी अतुकांत रचना में बहुत बेबाकी से इंसान को इंसान से सहज रूप में मिलने की शर्तों को रेखांकित किया है। हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्रनाथ

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  7. बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ! अंतिम पंक्तियाँ दिल जीत ले गयीं !

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  8. सुन्दर और सटीक रचना

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  9. Replies
    1. बहुत शुक्रिया आपका

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    1. बहुत शुक्रिया आपका

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  11. Replies
    1. बहुत शुक्रिया आपका

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