बहुत चमकदार है
जो भी इसके पास आता है
वो चमक जाता है
सूरज की रौशनी
की तरह
और अपनी एक पहचान
बना लेता है
इस लाइट के और भी
कई गुण हैं
ये धीरे धीरे
ज़मीन से उठा कर
आसमान पर बैठा देता है
इंसान खुद को भगवान तो नहीं
पर ऊँचे सिंहासन पर
बैठा हुआ महसूस करता है
कभी जो नज़रे पड़े उन पर तो
उनका चमकता पर
इतराता हुआ चेहरा
साफ दिख जाता है
लेकिन हो भी क्यों न
मेहनत भी तो की है
यहां तक पहुंचने में....
अब ज़मीन से ऊपर उठ गए हैं
तो ज़ाहिर है नीचे की चीज़ें
मुश्किल से दिखाई देंगी
और इस वजह से
इनका सारी ज़मीनी हकीकतों से
नाता टूट जाता है
अब गर आसमान में रहना है
तो इतनी सी कीमत तो
देनी ही पड़ेगी !!
दुःख की एक बात और है
ये समय के साथ अकेले हो जाते हैं
दोस्तों और सच से दूर,
मुखौटा लगाना इनकी
जरूरत बन जाती है
पर मुखौटा लगाते लगाते उसी
में रहने की आदत हो जाती है
और फिर लोग भी उन्हे वैसे ही
मिलने लगते हैं,
और बाहर की लाइट
पाने की चाह में
उनके अंदर की रौशनी कम होने
लगती है
ये कहना गलत न होगा की
पाने की चाह में
उनके अंदर की रौशनी कम होने
लगती है
ये कहना गलत न होगा की
ये हमेशा मुस्कुराहट सजा कर
दुःख की पहरन पहन कर
जीते रहते हैं
और कभी कभी थक कर
खुद से आज़ाद
हो जाते हैं!!!
#रेवा
दुःख की पहरन पहन कर
जीते रहते हैं
और कभी कभी थक कर
खुद से आज़ाद
हो जाते हैं!!!
#रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (17-06-2020) को "उलझा माँझा" (चर्चा अंक-3735) पर भी होगी।
ReplyDelete--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
--
दोस्तों और सच से दूर, होने पर ही रास्ता भटकता हे इंसान
ReplyDeleteबहुत बढ़िया प्रस्तुति
बहुत सुन्दर
ReplyDeletebeautiful
ReplyDeleteइस बेहतरीन लिखावट के लिए हृदय से आभार Appsguruji(जाने हिंदी में ढेरो mobile apps और internet से जुडी जानकारी )
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