तुम चाहते थे न
मैं चुप हो जाऊं
तुमसे न ज्यादा पूछूँ
न ज्यादा बातें करूँ ,
लो चुप हो गयी मैं अब
बन गयी एक मूक मूर्त ,
सब करती हूँ
घर के काम ,
तुमसे प्यार
तुम्हारी परवाह
तुम्हारा ख्याल ,
पर मैं अपने अन्दर
रोज़ कितने
जंग लड़ती हूँ
इसका शायद
अन्दाज़ा भी नहीं तुम्हे ,
हर लम्हा तुम्हे जानबुझ कर
अनदेखा करना
खून के घूँट पी कर
रह जाती हूँ ,
काश मैं
मूक ही पैदा होती ,
तन के जख्मो पर
मलहम लगा सकती हूँ
पर अपने मन के रिसते
जख्मों का क्या करूँ ?
रेवा
तन के जख्मो पर
ReplyDeleteमलहम लगा सकती हूँ
पर अपने मन के रिसते
जख्मों का क्या करूँ ?
मन के रिसते जख्मों का
इलाज़ समय रहते होना चाहिए
नहीं तो नासूर बन जाने के बाद
असहनीय-अमिट टीस होता है ....
हार्दिक शुभकामनायें
मन के जख्म पर मलहम भी नहीं लगा सकते -बहुत खूब सूरत अभिव्यक्ति
ReplyDeletelatest post: भ्रष्टाचार और अपराध पोषित भारत!!
latest post,नेताजी कहीन है।
बहुत सुन्दर, रेवा जी
ReplyDeleteमन के अंतःकरण से अनमोल प्रेम और
प्रेम के लिए जिम्मेदारी निभाने की कथा
को बहुत मार्मिक जज़्बात दिया
बहुत बहुत ख़ूब
मार्मिक कथ्य!
ReplyDeleteमन के ज़ख्मों का क्या करूँ???
ReplyDeleteइसका कोई जवाब नहीं.....मन के ज़ख्म रिसते हैं...नासूर बन जाते हैं....
बहुत कोमल से भाव लिखे हैं रेवा....
सस्नेह
अनु
रेवा जी,बहुत अच्छे विचार हैं.आपने जीवन में रिश्तों के स्थायित्व के लिए वर्तमान को मजबूत करने का संदेश दिया है,साथ ही यह भी व्यक्त किया है कि अतीत किसी भी प्रकार वर्तमान की सुख शांति को भंग न करे,चाहे अतीत के सुखद अथवा दुखद पल आपको कितना भी परेशान क्यों न करें.जख्मों के विषय भी बहुत बडा है.
ReplyDeleteभावो को संजोये रचना.....
ReplyDeletebahut bahut shukriya
ReplyDeleteमन के रिसते जख्मों को प्यार का मरहम ही भर सकता है, काश वो समझे ।
ReplyDeletesundar sandeh ,bhavpurn rachna man ke ghavon ko bhar pana behad mudhkil hota hai kyo?
ReplyDeleteबहुत मर्मस्पर्शी ....
ReplyDeleteअपने मन के जख्मो का क्या करू ?भावपूर्ण संवेदना युक्त रचना |
ReplyDelete.............उत्तम पोषण कैसे दे? ब्रेन कों !पढ़िए नया लेख-
“Mind की पावर Boost करने के लिए Diet "
मन के भावों लाजबाब अभिव्यक्ति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : तस्वीर नही बदली
Direndraji apka mere blog par swagat hai...shukriya hausla badhane ka
DeleteRewaji,
ReplyDeleteYou express your ideas very well but I am sorry I cannot write poems.
Vinnie
Vinnie ji its all ok......thanx for always reading and commenting
Deleteaap sabka bahut bahut shukriya.....
ReplyDeleteमन के शब्द ..मन के भाव ..और अभिव्यक्ति ...बेहद खूबसूरत प्रस्तुति
ReplyDeleteकरुण मन की अभिव्यक्ति ...
ReplyDeleteमर्म को छूती हुई रचना ...
wah bahut marmik rachna..Rewa...every line is touching.
ReplyDeletethank u so much vasu di
Deleteलो चुप हो गई मैं अब
बन गई एक मूक मूरत...
भाव विह्वल कर दिया आपकी इस लघु रचना ने
आदरणीया रेवा जी !
सच , हम पुरुषों द्वारा अनजाने में औरत पर ऐसी ज़्यादती हो जाती है...
हालांकि दुर्भावनावश नहीं कहा जाता चुप रहने के लिए...
औरत की प्रकृति कोमल होने के कारण वह आहत अवश्य होती है , लेकिन परस्पर विश्वास-भाव से इस स्थिति से मुक्त होना भी कठिन नहीं ।
भावपूर्ण रचना के लिए आभार !
❣हार्दिक मंगलकामनाओं सहित...❣
-राजेन्द्र स्वर्णकार
Rajendraji mere blog par apka swagat hai......shukriya apka
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