के बाद मिलता है
"औरत" का जन्म ,
तभी तो वो
पैदा होने से लेकर
मरने तक
हर तरफ खुशियाँ
बिखेरती है
और हर तरह की जिम्मेदारी
निभाती है ,
बचपन मे उसकी
किल्कारियों से घर गूंजता है
तो हर त्यौहार की रौनक भी
होती है वो ,
शादी के बाद
एक चार दिवारी को
घर का दर्ज़ा देती है ,
अपने त्याग और समझदारी की
मिट्टी से सींच कर
परिवार की मजबूत
नींव तैयार करती है ,
स्वं की इच्छा से पहले
दूसरों की इच्छा का
मान करती है ,
देवी देवताओं का आशीर्वाद
है शायद उस पर
तभी तो
ये सब कर पाती है ,
पर आज क्या हो रहा है
उसके साथ ???
ये सब जानते है ,
बस एक दुआ, एक इल्तेज़ा है
"औरत रूपी वरदान को
अभिशाप मे न बदलो "
रेवा
औरत हर समय सम्माननीय हैं,बहुत ही सुन्दर प्रस्तुती।
ReplyDeleteकाश कि कबूल हो ये दुआ.....
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति है रेवा....
सस्नेह
अनु
Nice words as well as feelings n photo also...ARUN
ReplyDeleteआपने लिखा....
ReplyDeleteहमने पढ़ा....और लोग भी पढ़ें;
इसलिए बुधवार 28/08/2013 को http://nayi-purani-halchal.blogspot.in उमड़ते आते हैं शाम के साये........आज श्री कृष्ण जन्माष्टमी है...बुधवारीय हलचल ....पर लिंक की जाएगी. आप भी देख लीजिएगा एक नज़र ....लिंक में आपका स्वागत है . धन्यवाद!
shukriya yashoda behen
Deleteऔरत तो गंगा है - रुख बदल रही,सूखती दिख रही - पर …… अभिशप्त करनेवालों के लिए कहर बनेगी - तय है
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति
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ReplyDeleteनासमझ लोग कभी तो समझेंगे औरत की मह्त्व
काश ....
ReplyDeleteयह काश कहकर खुद को दिलासा देती हैं तो कभी कहर बनकर त्रस्त करती हैं ...........
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , बहुत सुन्दर बात भी कही आपने
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ReplyDeleteइस सुन्दर और अनमोल कृति पे
मैं अपने जज़्बात रोक नहीं प् रहा हूँ ''रेवा'' जी
और इस रचना के माध्यम से आपकी इस रचना को नमन करता हूँ :
नारी तेरे रूप अनेक
बेटी, माँ और बीवी, तू ही,
लक्ष्मी तू और दुर्गा, तू ही ।
संघर्षों की मूरत तू ही ।।
फिर क्यूँ कहते सब हैं,
कि औरत तेरी क्या हस्ती है ?
सबको संभालती है तू ही,
सबपे प्यार लुटाती तू ।
हार मान जाये सब, पर-
हार नहीं मानती है तू ।।
जन्म से लेकर मृत्यु तक,
कष्ट-अपमान भी सहती तू ।
फिर भी जीवन से-
निराश ना कभी होती तू ।।
हे औरत ! तू देवी है ।
''अभी'' करता प्रणाम तुझे,
कभी कोई गलती हुयी तो,-
क्षमा करना मुझे-क्षमा करना मुझे ।।
..................अभिषेक कुमार झा ''अभी''.
sundar rachna abhiji...shukriya
Deleteऔरत रूपी वरदान को अभिशाप में न बदलो...
ReplyDeleteबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना,,,
RECENT POST : पाँच( दोहे )
ये दुआ कुबूल हो!
ReplyDeleteभावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
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ReplyDeleteरेवाजी ,
औरत के सम्मानीय स्थान का आप ने ठीक से विवरण किया है।औरत के सम्मानीय स्थान का आप ने ठीक से विवरण किया है।
Vinnie
सहमत हूँ तुम्हारी बात से ..कुदरत के वरदान को आज सबने मिल कर शापित कर दिया है ...बहुत दुःख होता है आज के हालात देख कर
ReplyDeleteअंतस को छूते शब्द...
ReplyDeleteबहुत अच्छी तरह प्रतिपादित किया है - काश ये लोग समझ सकें !
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteकाश ये समाज कुछ समझ पाता ... मन को छूते भाव ...
ReplyDeleteअतुल्य प्रस्तुति ।
ReplyDeletebahut hi khoobsurati se likhi hai rachna aapne
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