पहले जब भी दिल
तुम्हारे होते हुए भी
तुम्हारे लिए तड़पता था
बोझिल हो जाता था ,
लगता था
शायद तुम्हें
मेरी भावनाएं
समझ ही नहीं आती ,
तो क्या फ़ायदा
खुद को कष्ट
और तुम्हे दोष देकर ,
पर अब
जब मैं जान गयी हूँ की
तुम इतने भी अनजान नहीं ,
अपने किये
और मेरी हालात
से वाकिफ हो ,
तो किस तरह खुद को समझाऊं ?
क्या तुम्हारा
मन नहीं करता की
मुझे भी वो खुशियाँ
मिलनी चाहिए
जिनसे तुमने मुझे
अभी तक महरूम रखा है ,
पर अगर कोई
समझ के भी
नासमझ बना रहे तो
ये सवाल जवाब
सब बेकार
"ये बोझिल दिल लिए सीने मे
क्या ख़ाक मज़ा है जीने मे "
रेवा
Samajh rahi hoon
ReplyDeletekahanaa aasaan hota hai
jinaa Bahut hi mushkil
God Bless U
bahut bahut sundar
ReplyDeleteलाजवाब रचना |
ReplyDeleteबहुत संवेदनशील प्रस्तुति...
ReplyDeleteभावो की अभिवयक्ति......
ReplyDeleteHello Friend,
ReplyDeleteI see your website it’s nice and good contents for more improvement of your website Join Our Free Advertising Site and Get More Traffic for More Information Please Click Here
very beautifully written
ReplyDeleteबोझ कम हो, हल्का हो दिल, फिर भी जीवन कभी कभी मुश्किल ही जान पड़ता है...
ReplyDeleteजाने क्या रहस्य है!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
दिल है बोझिल,
ReplyDeleteतो गनीमत है, कुछ मिल सकता है इससे ,
बहुत बेचैन है,
परेशान है , हर शहर, खालीपन से ॥
आपकी कविता ने मुझे एक कविता लिखने के लिए प्रेरित किया । कृपया पूरा पढ़ने के लिए लोग इन करे
http://mishrasp.blogspot.in
इस दिल के बहुत से भाव है ...हर रोज़ भाव बदल जाता है ...
ReplyDeletevery touching...
ReplyDeleteaap to bahut gehre nijke di....................bahut kuchh keh diya.....speech less
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