उलझन भरी ज़िन्दगी मे
सुकून का एहसास
दिलाते हैं रिश्ते ,
गम की धुप को
छाँव मे बदलते हैं रिश्ते ,
हालातों की मार को भी
प्यार भरी थपकी
देते हैं रिश्ते ,
हो अगर प्यार भरा
तो फिर जीना आसां
करते हैं रिश्ते ,
पर सब रिश्तों से बड़ा है
खुद से खुद का रिश्ता
अगर ये बन जाये तो
"प्रयासों के गीत से
जीवन को संगीत बना दे ये रिश्ते "
रेवा
बढ़िया -
ReplyDeleteसादर-
खुद से जुड़ना ही कई रिश्तों के नींव है!
ReplyDeleteसुन्दर अभिव्यक्ति!
सुन्दर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteआपको रक्षा बंधन की बहुत बहुत शुभकामनाएं
बेहतरीन रचना
ReplyDeleteaap ne bhut achi kavita likhi ha.
ReplyDeleteरिश्ते न हों तो जेवण नीरस हो जाता है ...
ReplyDeleteइनकी अहमियत को समझना ओर निभाना जरूरी है ...
बहुत ही बढिया कविता ! शब्दों और भावों का लाजवाब संयोजन !!
ReplyDeleteरक्षाबंधन की ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!
अनुपम भाव संयोजन ....
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ReplyDeleteबहुत ही भावपूर्ण रक्षा बंधन की बधाई ओर शुभकामनायें ...
बहुत ही सुंदर,रक्षा बंधन की हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ !
ReplyDelete''सबसे बड़ा खुद से खुद का रिश्ता''
ReplyDeleteरेवा जी, बहुत सुन्दर शब्द संजोये आपने
रिश्तों के लिए.
सुन्दर रचना के लिए हार्दिक बधाई।
आपके ब्लॉग को ब्लॉग"दीप" में शामिल किया गया है ।
ReplyDeleteजरुर पधारें ।
ब्लॉग"दीप"
shukriya Pradeep ji
Deleteराखी की हार्दिक शुभकामनायें .........
ReplyDeleteरेवा जी, बहुत ही अच्छे विचार.जिन्दगी की उलझनों से मुक्ति स्वयं
ReplyDeleteको समझने से ही सम्भव है.
सुंदर सृजन लाजबाब प्रस्तुति,,,
ReplyDeleteRECENT POST : सुलझाया नही जाता.
beautiful poem Rewa..
ReplyDeleteबहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteकल 22/08/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद!
shukriya Yashwant bhai
Deleteबहुत भाव पूर्ण सुन्दर
ReplyDeleteख़ूबसूरत खयालातों से तरबतर रचना
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