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Saturday, June 19, 2010

उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन

उफ्फ्फ्फ़ वो कॉलेज के दिन भी क्या दिन थे
वो बातें वो मुलाकातें ........
वो कैंटीन की मस्ती ...वो छीना झपटी
बगल की बेंच खाली रखना और तेरा इंतज़ार करना
तेरा हमेशा की तरह पेन भूल जाने के
बहाने मुझे देखना .......
ठण्ड में घंटो धुप में बैठ कर फाइल पूरा करना
तेरा पैसे न लाना और मेरी शाल गिरवी रख
कर किताब लेना ........
घंटो कॉलेज की सीडी पर बैठ कर बातें करना
घर से जूठ बोल बोल कर कॉलेज में मिलना
बरसात में एक छत्री के निचे रहने के लिए अपनी छत्री छुपाना
अनगिनत ऐसी यादें .............
काश वो दिन फिर आ जाये ..........
उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन

रेवा

7 comments:

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  3. college ke bhi kya din the.......
    wo shaam wo baate woh sapno jaisi raate....

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  4. काश वो दिन फिर आ जाये ..........
    उफ्फ्फ वो कॉलेज के दिन
    Kaunse din,kab laut aate hain?

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  6. यह आना-जाना, छूटने-बिछड़ने का क्रम तो लगा हीं रहता है । यह बात हम सभी जानते है, पर यह मन कहाँ मानता है । आगे की ज़िन्दगी हम लोगों की राह देख रही है, ना जाने कैसे-कैसे रास्ते मिलेंगे । कहीं पढ़ा था “बहता पानी निर्मला” । यह पानी कितना निर्मल है यह तो नहीं पता, पर यह ज़िन्दगी बहती रहेगी, पानी की तरह हमेशा

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  7. mukanda ji thanx for visiting my blog

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