शाम का सुहाना मौसम ,
बादल साँझ की चादर ओढे
रात्रि की तरफ बढ़ रहा था /
पक्षी अपने अपने घोसलों की ओर जा रहे थे
हवा अपने पुरे योवन के साथ
मदमाती हुई बह रही थी,
ऐसे मे मैं अकेली बैठी
इस प्रकृति के पुरे सौंदर्य के साथ भी
खुद को अकेला महसूस कर रही थी ,
पर तभी अचानक हवा के झोके की तरह
तेरा पैगाम आया ,
उस एक प्यार भरे पैगाम को पा कर
मेरा मन मयूर नांच उठा ,
अब ये साँझ की बेला तनहा न हो कर
हमारे प्यार से महकने लगी /
रेवा
बादल साँझ की चादर ओढे
रात्रि की तरफ बढ़ रहा था /
पक्षी अपने अपने घोसलों की ओर जा रहे थे
हवा अपने पुरे योवन के साथ
मदमाती हुई बह रही थी,
ऐसे मे मैं अकेली बैठी
इस प्रकृति के पुरे सौंदर्य के साथ भी
खुद को अकेला महसूस कर रही थी ,
पर तभी अचानक हवा के झोके की तरह
तेरा पैगाम आया ,
उस एक प्यार भरे पैगाम को पा कर
मेरा मन मयूर नांच उठा ,
अब ये साँझ की बेला तनहा न हो कर
हमारे प्यार से महकने लगी /
रेवा
बहुत ही खुबसूरत ख्यालो से रची रचना......
ReplyDeleteवाह बहुत खूब ..
ReplyDeleteAapka jeewan sada mehke yahee dua hai!
ReplyDeleteसाँझ का बहुत सुन्दर चित्रण करती एक मधुर शब्द रचना !
ReplyDeleteगहरी शुभकामनायें !!
saanjh ki bela bahut sunder ho gayi hai *****
ReplyDeletemanohari prastuti
bahut bahut pyaree kavitaa
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya....
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