कल पुरानी डाईरी के
कुछ पन्ने पलटे तो
मन अवसाद से भर गया
ऑंखें भीग गयी ,
पुराने ज़ख़्म हरे हो गए
परस्थितियाँ बदली तो नहीं ,
पर शायद हम समय
और अनुभव के साथ
उन्हें संभालना सीख जातें हैं ,
पर मन मे कहीं न कहीं
उन सब की वजह से
एक गांठ जरुर बंध जाती है
जिसे हम लाख कोशिशों
के बाद भी नहीं खोल पाते ,
कुछ लोग ,
उनके द्वारा कही गयी
मन को चुभती कुछ बातें
हम नहीं भूल पाते ,
काश! हमारे पास भी
कोई डिलीट बटन होता /
रेवा
कुछ पन्ने पलटे तो
मन अवसाद से भर गया
ऑंखें भीग गयी ,
पुराने ज़ख़्म हरे हो गए
परस्थितियाँ बदली तो नहीं ,
पर शायद हम समय
और अनुभव के साथ
उन्हें संभालना सीख जातें हैं ,
पर मन मे कहीं न कहीं
उन सब की वजह से
एक गांठ जरुर बंध जाती है
जिसे हम लाख कोशिशों
के बाद भी नहीं खोल पाते ,
कुछ लोग ,
उनके द्वारा कही गयी
मन को चुभती कुछ बातें
हम नहीं भूल पाते ,
काश! हमारे पास भी
कोई डिलीट बटन होता /
रेवा
मुझे भी तलाश है ऐसे बटन की
ReplyDeleteआपकी तलाश पूरी होगी तो मैं मांग लूँ ..... :)
Deleteबहुत सशक्त रचना जो कहने के लिए लिखी गयी है सब बयान कर रही है
ReplyDeleteउनके(जो अपने कहलाते हैं) द्वारा कही गयी
ReplyDeleteमन को चुभती कुछ बातें
हम नहीं भूल पाते ,
काश! हमारे पास भी
कोई डिलीट बटन होता ....
है न क्षमा(डिलीट बटन) ,
लेकिन दिल से !
kuchh gaanthe kholi nahi jaati rewa ji......kuchh ghaantho ko suljhaya nahi jaata......kyunki jab yeh khulti hai....to sab bikhar jaata hai.......unko waise hi rahne do.....
ReplyDeleteना हम बदले और ना यादे बदली ....बस वक्त ही बदल गया
ReplyDeleteKaash hamare paas bhee ek delete button hota!
ReplyDeleteaap sabka bahut bahut shukriya
ReplyDeleteजब आपकी तलाश पूरी हो जाये तो हमें जरुर बताइए गा
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव दीदी
shukriya dinesh
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