Followers

Tuesday, October 2, 2012

मन की गांठ

कल पुरानी डाईरी के
कुछ पन्ने पलटे तो
मन अवसाद से भर गया
ऑंखें भीग गयी  ,
पुराने ज़ख़्म हरे हो गए
परस्थितियाँ बदली तो नहीं ,
पर शायद हम समय
और अनुभव के साथ
उन्हें संभालना सीख जातें हैं ,
पर मन मे कहीं न कहीं
उन सब की वजह से
एक गांठ जरुर बंध जाती है
जिसे हम लाख कोशिशों
के बाद भी नहीं खोल पाते ,
कुछ लोग ,
उनके द्वारा कही गयी
मन को चुभती कुछ बातें
हम नहीं भूल पाते ,
काश! हमारे पास भी
कोई डिलीट बटन होता /


रेवा


10 comments:

  1. मुझे भी तलाश है ऐसे बटन की

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी तलाश पूरी होगी तो मैं मांग लूँ ..... :)

      Delete
  2. बहुत सशक्त रचना जो कहने के लिए लिखी गयी है सब बयान कर रही है

    ReplyDelete
  3. उनके(जो अपने कहलाते हैं) द्वारा कही गयी
    मन को चुभती कुछ बातें
    हम नहीं भूल पाते ,
    काश! हमारे पास भी
    कोई डिलीट बटन होता ....
    है न क्षमा(डिलीट बटन) ,
    लेकिन दिल से !

    ReplyDelete
  4. kuchh gaanthe kholi nahi jaati rewa ji......kuchh ghaantho ko suljhaya nahi jaata......kyunki jab yeh khulti hai....to sab bikhar jaata hai.......unko waise hi rahne do.....

    ReplyDelete
  5. ना हम बदले और ना यादे बदली ....बस वक्त ही बदल गया

    ReplyDelete
  6. Kaash hamare paas bhee ek delete button hota!

    ReplyDelete
  7. जब आपकी तलाश पूरी हो जाये तो हमें जरुर बताइए गा
    बहुत सुन्दर भाव दीदी

    ReplyDelete