रोज़ की और और की दौड़ मे
खुशियों के वो छोटे छोटे पल
कहीं दब कर रह गयें हैं ,
और सबसे बड़ी बात
ये हमें पता भी नहीं चलता की
हम कब एक robot वाली
ज़िन्दगी जीने लगे हैं ,
न हमारे पास जीवन साथी
की बातें सुनने का समय होता हैं
न बच्चो की शरारतों मे खुश होने का ,
बस जीए चले जा रहे हैं
क्या यही वो ज़िन्दगी है
जिसकी हम कामना करते हैं ,
नीरस ,बेमायने
क्या हम वक़्त निकाल कर सोच पायेंगे ????????
रेवा
खुशियों के वो छोटे छोटे पल
कहीं दब कर रह गयें हैं ,
और सबसे बड़ी बात
ये हमें पता भी नहीं चलता की
हम कब एक robot वाली
ज़िन्दगी जीने लगे हैं ,
न हमारे पास जीवन साथी
की बातें सुनने का समय होता हैं
न बच्चो की शरारतों मे खुश होने का ,
बस जीए चले जा रहे हैं
क्या यही वो ज़िन्दगी है
जिसकी हम कामना करते हैं ,
नीरस ,बेमायने
क्या हम वक़्त निकाल कर सोच पायेंगे ????????
रेवा
जो ना सोचेगें तो बहुत कुछ खो देगें !!
ReplyDeleteBahut kuchh bahut peechhe chhoot gaya...
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteइस जिंदगी की दोड़ मैं हम लोग धीरे 2 अपने आप को खो रहे है
मार्मिक प्रस्तुति...
ReplyDeleteसच में हम सब जाने क्यों ऐसी नीरस जिन्दगी बस जिए जा रहे हैं...!!
ReplyDeleteदिनांक 30/12/2012 को आपकी यह पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपकी प्रतिक्रिया का स्वागत है .
धन्यवाद!
yashwant bhai bahut bahut shukriya apka...
Deleteसही चिंतन
ReplyDeleteवक़्त की रफ़्तार के साथ कदम मिलाने में सब छूट गया है.
ReplyDeleteसुन्दर भाव.