"प्यार" सच या सपना
कहीं मिलता है कोई अपना ?
या ये बस एक छलावा है
उलझे रहने का एक सहारा है ,
बिना "मतलब " प्यार का भी
अस्तित्व नहीं शायद ,
दुनिया मे लोग
जितना खुद को प्यार करते हैं
उसका लेश मात्र भी
दूसरों से नहीं करते ,
बस अपने मतलब को
प्यार का चोला पहना
देते हैं और
बड़ी बड़ी बातें भर करतें हैं,
क्युकी प्यार का सच्चा
एहसास तो उन्हें छु
कर भी नहीं गया है ,
अगर ऐसा होता तो
तो आज जितनी अराजकता
फैली है वो नहीं होती ,
न ही किसी के "न "
कहने पर उसे मार दिया जाता
या तेजाब से चेहरा ख़राब कर दिया जाता ,
क्युकी प्यार तो बस प्यार करना
जानता है न ,
अफ़सोस हम अपने बच्चों को
प्रकृति के साथ-साथ
प्यार का भी तोहफा
नहीं दे पायेंगे /
रेवा
कहीं मिलता है कोई अपना ?
या ये बस एक छलावा है
उलझे रहने का एक सहारा है ,
बिना "मतलब " प्यार का भी
अस्तित्व नहीं शायद ,
दुनिया मे लोग
जितना खुद को प्यार करते हैं
उसका लेश मात्र भी
दूसरों से नहीं करते ,
बस अपने मतलब को
प्यार का चोला पहना
देते हैं और
बड़ी बड़ी बातें भर करतें हैं,
क्युकी प्यार का सच्चा
एहसास तो उन्हें छु
कर भी नहीं गया है ,
अगर ऐसा होता तो
तो आज जितनी अराजकता
फैली है वो नहीं होती ,
न ही किसी के "न "
कहने पर उसे मार दिया जाता
या तेजाब से चेहरा ख़राब कर दिया जाता ,
क्युकी प्यार तो बस प्यार करना
जानता है न ,
अफ़सोस हम अपने बच्चों को
प्रकृति के साथ-साथ
प्यार का भी तोहफा
नहीं दे पायेंगे /
रेवा
सही कहा आपने. प्यार तो सिर्फ़ देना जानता है लेना नही.
ReplyDeleteबेहतर लेखन !!
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ReplyDeleteला-जबाब प्रस्तुति !!
शुभकामनाएँ !!
बहुत ही बढ़िया
ReplyDeleteसादर
Khush qismat logon ko mil bhee jate hain apne...
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी.... जबरदस्त अभिवयक्ति.....वाह!
ReplyDeleteवाह!बहुत सुंदर .जबरदस्त अभिवयक्ति
ReplyDeleteरेवा जी..
ReplyDeleteभ्रम से बाहर निकालती एक मार्मिक अभिव्यक्ति दिल को छू गयी ।
वाह बहुत उम्दा
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