स्त्री
बोलने को शक्ति स्वरुप
घर की धुरी ,घर की लक्ष्मी ,
जिसके बिना घर, घर नहीं होता
जो अपने से पहले
घर वालों का ध्यान रखती है ,
चाहे खाना हो या कपड़े
पहले उनकी जरूरते
पूरी करती है ,
फिर खुद के बारे मे
सोचती है ,
पति का तो खास
ध्यान रखती है ,
अपनी हर एक दुआ मे
उसे शामिल करती है ,
पर कितने पति होंगे
जो भगवान से
अपनी बीवी की लम्बी उम्र
की कामना करते होंगे ?
अगर पति प्यार न भी करे
तो भी उसे लगता है
की शायद परेशान हैं
कोई बात नहीं ,
बीमारी मे भी ध्यान
न रखे तो भी
वो कभी शिकायत नहीं करती ,
उसे लगता है उससे भी जरूरी
उनके पास काम है ,
हर कठिनाई मे
सोचा जाता है की
वो खुद ही संभाल लेगी समझदार है ,
पर इन्सान है वो भी
कभी कुछ भूल से
भी गलत हो गया तो
बोला जाता है की उसमे
बुद्धि की कमी है ,
कितनी दोहरी
मानसिकता लिए जीते हैं लोग
शायद सब घरों मे नहीं
पर अभी भी
बहुत घरों की कहानी है ये
पर कब तक ?
रेवा
बिलकुल सच कहा रेवा.....
ReplyDeleteलाख जतन कर ले एक स्त्री...उसकी एक भूल उसे कटघरे में खड़ा कर देती है....
जाने कब तक चलेगा ये सिलसिला.....कब तक???
सस्नेह
अनु
KYA AISEE SOCH EK PATI KI NAHI HO SAKTI???
ReplyDeleteWAISE BEHTAREEN ABHIVYAKTI:)
बिलकुल सही कहा आपने।
ReplyDeleteसादर
सच कहा ... स्त्री ही क्यों ... सार्थक प्रश्न उठाती है ये रचना में ...
ReplyDeleteजब तक स्त्रियाँ थेथर रहेगीं !!
ReplyDeletebahut achee aur sachhee rachanaa bahut kuch kah gayeen tum stree se bhee purush se bhee
ReplyDeleteहर स्त्री के जीवन की गाथा
ReplyDeleteबहुत से घरों की कहानी ....सच कहती हुई रचना
ReplyDeleteबहुत सटीक रचना
ReplyDeleteसरल सबदों में,सुंदर भावों के साथ उम्दा रचना........
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