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Thursday, January 17, 2013

पर कब तक ?

आज कर दिया अंतिम संस्कार
मैंने अपनी उम्मीदों का ,
कुछ नहीं बदला
सब वैसे ही चल रहा है
शांत हो गए लोग भी
मोमबतीयाँ जला जला कर
आवाज़ उठा उठा कर ,
कानून मे बदलाव
अभी तक नहीं आया ,
हर जगह वारदाते
हो रही है ,
हद तो ये है की
छोटी बच्चियों तक को
नहीं बख्शते ये वेह्शी ,
उनका बचपन छिन कर
खुद चैन से घूमते हैं ,
पर कब तक ?


रेवा

14 comments:

  1. सुन चुके है बहुत किस्से वीरता पुरुषार्थ के
    हर रोज फिर किसी द्रौपदी का खिंच रहा क्यों चीर है ?
    जुल्म, अन्याय को देख कर हम सब खामोश क्यों हो जाते हैं .
    अब समय आ गया है की
    हम सभी अपने कल को बदलने के लिए प्रयासरत हों .

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  2. उनका बचपन छिन कर
    खुद चैन से घूमते हैं ,
    पर कब तक ?

    जब तक हम ,
    सरकार कुछ करे ,
    इसका इंतजार करते रहेगें !!

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  3. कब तक का उत्तर यही है कि जब तक हम खुद को नहीं बदलते तब तक यह सब होता रहेगा :(



    सादर

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  4. उनका बचपन छिन कर
    खुद चैन से घूमते हैं ,
    पर कब तक ?
    jab tak janata shasan ki chain chhin na le.
    New post कुछ पता नहीं !!! (द्वितीय भाग )
    New post: कुछ पता नहीं !!!

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  5. प्रभावी प्रस्तुति

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  6. शर्म आती है अपने पर ओर देश की क़ानून पर ...
    कब ये सिलसिला खयाम होगा ...

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  7. यही एक प्रश्न आ खड़ा होता है आखिर कब तक .... सार्थक प्रस्तुति

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  8. बेहतरीन अंदाज़..... सुन्दर
    अभिव्यक्ति....

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  9. रेवा जी...
    अर्थपूर्ण सुन्दर रचना !

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  10. बहुत खूब ...बदलाव हमेशा अपने वक्त से ही आएगा

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  11. शैतान कहाँ समझते हैं ....
    संवेदनशील प्रस्तुति ...

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  12. aap sabka bahut bahut shukriya aur abhar...

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