के बाद मिलता है
"औरत" का जन्म ,
तभी तो वो
पैदा होने से लेकर
मरने तक
हर तरफ खुशियाँ
बिखेरती है
और हर तरह की जिम्मेदारी
निभाती है ,
बचपन मे उसकी
किल्कारियों से घर गूंजता है
तो हर त्यौहार की रौनक भी
होती है वो ,
शादी के बाद
एक चार दिवारी को
घर का दर्ज़ा देती है ,
अपने त्याग और समझदारी की
मिट्टी से सींच कर
परिवार की मजबूत
नींव तैयार करती है ,
स्वं की इच्छा से पहले
दूसरों की इच्छा का
मान करती है ,
देवी देवताओं का आशीर्वाद
है शायद उस पर
तभी तो
ये सब कर पाती है ,
पर आज क्या हो रहा है
उसके साथ ???
ये सब जानते है ,
बस एक दुआ, एक इल्तेज़ा है
"औरत रूपी वरदान को
अभिशाप मे न बदलो "
रेवा