विरह कि बेला तो
सच मे बहुत
मुश्किल थी ,
पर जब
मिलन का समय
नज़दीक आने लगा तो ,
मन मे हज़ारों दीये
एक साथ जगमगाने लगे ,
लेकिन साथ ही साथ
इंतज़ार करना कठिन हो गया ,
एक एक पल जैसे
एक सदी बन गए ,
कितना कठिन होता है न
विरह और मिलन
के बीच का इंतज़ार ,
पर शायद यही जीवन है
विरह मिलन के आनंद को
दुगना कर देता है,
जैसे दुःख
सुख़ के एहसास
को दुगना कर देता है।
रेवा
बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
ReplyDeleteआपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आप की इस प्रविष्टि की चर्चा शनिवार 02/11/2013 को आओ एक दीप जलाएँ ...( हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल : 039 )
- पर लिंक की गयी है , ताकि अधिक से अधिक लोग आपकी रचना पढ़ सकें . कृपया पधारें, सादर ....
upasna ji shukriya apka
Deleteसच कहा,सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteनई पोस्ट हम-तुम अकेले
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आपका आदरणीया -
शुभकामनायें भी-
<3:*
ReplyDeleteदीपावली की बहुत बहुत बधाई और हार्दिक शुभकामनायें
भावो को खुबसूरत शब्द दिए है अपने....
ReplyDeleteसुंदर !! प्यारे भाव लिए !
ReplyDelete!! प्रकाश का विस्तार हृदय आँगन छा गया !!
!! उत्साह उल्लास का पर्व देखो आ गया !!
दीपोत्सव की शुभकामनायें !!
बेहतरीन ....
ReplyDeleteसच कहा है .... प्यासे से पानी का स्वाद पूछें ... ऐसे ही प्रेम में मिलन का एहसास विरह के बाद ...
ReplyDeleteसही कहा आपने विरह मिलन के आनंद को दुगुना करदेता है..मनभावन रचना.... :-)
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