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Wednesday, November 13, 2013

फिर वही दर्द



हर बार क्यूँ
इस इम्तेहान
इस दर्द
के दौर से गुजरना
पड़ता है ,
मन लगाने के तो
कई साधन है,
पर वो जो
इस मन को सुकून दे
जिससे सब कुछ बाँट कर
मन हल्का हो सके ,
वो कहीं दूर
जा बैठा है ,
हमेशा सोचती हूँ
ये आखिरी बार है,
पर हर बार फिर
वही दर्द ,वहीँ कश्मकश
सामने खड़ा दीखता है ,


"जो तू नहीं मेरे पास
तो बस तन्हाई है आस-पास "

रेवा

8 comments:

  1. आखरी बार आखिर में आता है
    ये जिंदगी है
    ऐसे मामले बार बार आते हैं
    हार्दिक शुभकामनायें

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  2. सुन्दर प्रस्तुति-
    आभार आदरेया

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  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति

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  4. कोमल भाव...
    भावपूर्ण रचना...

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  5. सुंदर
    तनहाई के दर्द को झेलती कविता

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  6. बहुत भावपूर्ण रचना...

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