हर बार क्यूँ
इस इम्तेहान
इस दर्द
के दौर से गुजरना
पड़ता है ,
मन लगाने के तो
कई साधन है,
पर वो जो
इस मन को सुकून दे
जिससे सब कुछ बाँट कर
मन हल्का हो सके ,
वो कहीं दूर
जा बैठा है ,
हमेशा सोचती हूँ
ये आखिरी बार है,
पर हर बार फिर
वही दर्द ,वहीँ कश्मकश
सामने खड़ा दीखता है ,
"जो तू नहीं मेरे पास
तो बस तन्हाई है आस-पास "
रेवा
आखरी बार आखिर में आता है
ReplyDeleteये जिंदगी है
ऐसे मामले बार बार आते हैं
हार्दिक शुभकामनायें
सुन्दर प्रस्तुति-
ReplyDeleteआभार आदरेया
सुन्दर प्रस्तुति !
ReplyDeleteनई पोस्ट लोकतंत्र -स्तम्भ
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteRajeev ji shukriya
ReplyDeleteकोमल भाव...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना...
सुंदर
ReplyDeleteतनहाई के दर्द को झेलती कविता
बहुत भावपूर्ण रचना...
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