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Monday, July 6, 2015

गोल रोटी



रोटी को गोल
बनाते बनाते
मेरी ज़िन्दगी भी जैसे
गोल हो गयी है………

हांथों मे बचा हैं तो बस
इधर उधर चिपका
गीला आटा.……

बेमतलब बेमानी रिश्तों की तरह
जिसे धो कर साफ़
करना है.…

फिर भरना जो है
रिश्तों की ऊष्मा से
और ये क्रम यूँही
चलता रहेगा
उसी गोल रोटी की तरह…

रेवा






11 comments:

  1. ओह्ह्ह्ह !!!....बहुत सुन्दर....!!!

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    1. smita ji blog par swagat hai apka...bahut bahut shukriya

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  2. मैं तो कहूँगा की जबरदस्त रचना है
    धन्यवाद

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  3. लाजवाब बिम्ब से रचना के विषय को बाखूबी पकड़ा है ...

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  4. आपको सूचित किया जा रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा कल बुधवार (08-07-2015) को "मान भी जाओ सब कुछ तो ठीक है" (चर्चा अंक-2030) पर भी होगी!
    --
    सादर...!

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  5. बहुत सुन्दर बिम्ब के साथ अनूठी रचना..

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  6. सु्न्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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  7. मर्मस्पर्शी ....बहुत गहरी पंक्तियाँ

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