पापा
मुझे दर्द बहुत होता है
जब आपकी तस्वीरों
पर माला देखती हूँ
मुझे दर्द बहुत होता है
जब माँ को तन्हाइयों से
लड़ते देखती हूँ
मुझे दर्द बहुत होता है
जब गर्मियों में
बच्चों की छुट्टियां होती हैं
और आपकी आवाज
नहीं आती,
मुझे दर्द बहुत होता है
जब भईया को इस उम्र में
इतना बड़ा बनते देखती हूँ ,
पापा बहुत याद आते हैं आप
जब मुझे ज़िद करने की
इच्छा होती है ,
बहुत रोती हूँ मैं
जब कोई लाड़ से मनुहार
नही करता ,
पापा बहुत दर्द होता है
जब मुझे एक दोस्त चाहिए
होता है समझने
और प्यार करने के लिए ,
पर एक बात की खुशी
हमेशा रहेगी कि भगवान ने
आपको दर्द से सदा के लिए
मुक्त कर दिया ,
इसी आस के साथ मैं भी
ज़िंदा हूँ पापा
कि एक दिन हम फिर मिलेंगे
अनंत से आगे इस दुनिया से दूर
जन्नत में।
रेवा
सुंदर कविता
ReplyDeleteशुक्रिया लोकेश जी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 26 मई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा बहन
Deleteमार्मिक प्रस्तुति ,बहुत सुन्दर !आभार। "एकलव्य"
ReplyDeleteshukriya dhruv ji
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteshukriya sushil ji
Deleteमर्मस्पर्शी!
ReplyDeleteशुक्रिया vishwa ji
Deleteबहुत सुन्दर...
ReplyDeleteशुक्रिया sudha ji
Deleteमर्मस्पर्शी कविता
ReplyDeleteशुक्रिया onkar ji
Deleteआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteशुक्रिया harshvardhan ji
Deleteशुक्रिया kuldeep ji
ReplyDeleteपिता से विछोह का मार्मिक प्रस्तुतीकरण। पिता के स्मरण को ताज़ा करती सुन्दर रचना।
ReplyDeleteशुक्रिया ravindra ji
Deleteपिता प्रेम के गहरे एहसास समेटे ... लाजवाब भावपूर्ण रचना ...
ReplyDeleteThis comment has been removed by the author.
Deleteशुक्रिया naswa ji
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