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Thursday, January 4, 2018

अभिनय






अभिनय ??
न कभी सीखा तो नही मैंने
पर हर रोज़ इसकी जरूरत
ज़रुर महसूस होती है
घरवालों के साथ
और बाहर वालों के साथ भी
कभी कभी तो खुद के साथ भी,

चाहती मैं कुछ हूँ
करना कुछ और ही पड़ता है
और बोलती तो कुछ और ही हूँ
कई बार मन बिल्कुल
नहीं मानना चाहता
आये दिन के समझौतों को,
पर उसका तो कत्ल
मैंने बहुत पहले ही कर दिया है
अब तो वो बस दफ़न पड़ा है
मेरे शरीर में
और इसलिए
दख़ल नही दे पाता
मेरे किसी भी फैसलों में ,

लेकिन .....
उम्र के इस पड़ाव पर
थक सी गयी हूँ
अभिनय करते करते
अब तो
मुझे मुझ सी ही रहना है
तुम्हें तुम्हें तुम्हें मैं
पसंद हूँ तो ठीक
और अगर नहीं हूँ
तो कोई  बात नहीं
कम से कम मेरा मन
जो अब गहरी नींद से जागा  है
ज़िन्दा तो हो सकेगा
और तभी तो  ज़िन्दा महसूस
करुँगी मैं भी !!!

रेवा 

7 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (05-01-2018) को "सुधरें सबके हाल" (चर्चा अंक-2839) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद ब्लॉग पर 'रविवार' ०७ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  3. वाह ! खूबसूरत प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीया ।

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    1. शुक्रिया राजेश जी

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  4. वाह सराहनीय पहल....

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