कछुए के नाम से
एक कहानी बहुत प्रसिद्ध है
वो सही भी है
वो सही भी है
पर सही ये भी है कि
कछुआ धीरे चलता है
पर बुद्धू नहीं होता है
खरगोश की चपलता को
भली भांति समझता है
जब उसका मन होता है
अपने खोल में जा कर
चिंतन मनन करता है
और फिर
दुगने जोश के साथ
चल पड़ता है
और पहुंच जाता है
खरगोश से पहले
उस ठिकाने पर
जहां जाने की होड़ मची हो
कछुआ धीरे चलता है
पर बुद्धू नहीं होता है
खरगोश की चपलता को
भली भांति समझता है
जब उसका मन होता है
अपने खोल में जा कर
चिंतन मनन करता है
और फिर
दुगने जोश के साथ
चल पड़ता है
और पहुंच जाता है
खरगोश से पहले
उस ठिकाने पर
जहां जाने की होड़ मची हो
कछुआ चलता रहता है
उसे पता होता है
क़दम क़दम की दूरी
अपने चलने की ताकत
खरगोश की छलांग में
उसके घमंड की उछाल को
भाँप लेता है कछुआ
सुस्ताने की आदत
खरगोश को है
यह हर एक कछुआ जानता है
कछुआ अपने और
खरगोश के बीच की रेस
बिना हार जाने की सोचे
स्वीकार करता है
क्योंकि
कछुआ चिंतन मनन करता है।
उसे पता होता है
क़दम क़दम की दूरी
अपने चलने की ताकत
खरगोश की छलांग में
उसके घमंड की उछाल को
भाँप लेता है कछुआ
सुस्ताने की आदत
खरगोश को है
यह हर एक कछुआ जानता है
कछुआ अपने और
खरगोश के बीच की रेस
बिना हार जाने की सोचे
स्वीकार करता है
क्योंकि
कछुआ चिंतन मनन करता है।
#रेवा
#कछुआ
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (07-11-2018) को "दीप खुशियों के जलाओ" (चर्चा अंक-3148) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
शुक्रिया
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