आज फिर दिखा मुझे
अपनी खिड़की से
वो आधा चाँद
जिसे देख
मैं भाव विभोर हो गयी
मुस्कुराते हुई तुरन्त
लिख दी तुम्हारे नाम
कविता और
उसमे लिखी वो सारी
अनकही
बातें जो चाह कर भी
मैं तुमसे कह नहीं पाती...
जानते हो क्यों ??
क्योंकि डरती हूँ
क्योंकि डरती हूँ
कहीं वो बांध जिसने
हम दोनों को बांध
रखा है टूट न जाये
और हम बिखर न
जाएं...
#रेवा
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार(18-02-2020 ) को " "बरगद की आपातकालीन सभा"(चर्चा अंक - 3615) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा