पैदाइश
एक साथ खेले
बड़े हुए
रोटियाँ बांटी
ख़ुशियाँ और ग़म
बांटा
लड़ाई झगड़े किये
पर हर बार साथ हो लिए
कभी किसी को अपने
बीच न आने दिया
जब बड़े हो जाते हैं
तो समझदारी भी
बढ़ जाती है
रिश्ता और आपसी
समझ और मजबूत
हो जानी चाहिए
पर जैसे जैसे बड़े होते हैं
जाने क्यों बचपन के रिश्तों में
सेंध सी लग जाती है
एक दूसरे से कटने लगते हैं
रिश्ते की ऊष्मा कहीं
खो सी जाती है
दुनिया भर की बातें
उलाहने बीच में आ जाते हैं
अपनी अपनी अलग दुनिया
बसा लेते हैं
और बचपन के प्यार और
साथ को जाने क्यों
भूल जाते हैं
#रेवा
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (05-02-2020) को "आया ऋतुराज बसंत" (चर्चा अंक - 3602) पर भी होगी।
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार मयंक जी
Deleteसमय का चक्र बदलता रहता है,जहाँ रिश्ते भी रिसने लगते हैं
ReplyDeleteसच कहा ...शुक्रिया
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