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Tuesday, June 2, 2020

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चुप खड़े रह कर जब सिर्फ हाँ में 
सर हिलाया तो सबको खूब 
पसंद आया 
दौड़ दौड़ कर सारे घर का काम 
निबटाया तो सबको खूब 
पसंद आया 
सज धज कर हर अनुष्ठान में 
सम्मिलित हुई तो सबको 
बहुत पसंद आया 
हर तरफ से अपना मन मार कर जब तक 
जिंदगी जीती रही औरों के लिए 
सबको खूब पसंद आया 
"अच्छी बहू" का टैग भी लगाया

आधी से ज्यादा जिंदगी बिता कर 
जब ख़ुद के लिए जीने की चाह जगी 
तो किसी को अच्छा नहीं लगा 

जब चुप ने शब्दों का साथ देना शुरू 
किया, खुद के लिए बोलना शुरू किया 
तो किसी को अच्छा न लगा 

जहां मन ने कहा हाँ वहां जाना 
जहां मन ने कहा न वहां नहीं जाना 
नहीं गई
तो किसी को अच्छा न लगा

जब औरत मन की करने लगे 
ख़ुद के लिए जीने लगे वो बोलने लगे 
अरे नहीं (जवाब ) देने लगे 
तो वो अच्छी रह नहीं जाती 

और तब उसे अच्छाई के 
सिंहासन से 
उतार कर एक और टैग से 
नवाज़ा जाता है 
आज के जमाने की "बिगड़ी बहू"

3 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 04 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. अच्छा विश्लेषण।
    सार्थक रचना।

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