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Saturday, February 16, 2013

फ़र्ज़

माँ बाप अपने बच्चों को
जब बड़ा और कामयाब
होता देखते हैं,
तो उन्हें लगता है
उनकी सारी मेहनत
सफल हो गयी ,
जितनी भी दुःख तकलीफें
उन्होंने झेली है
वो सब भूल जाते हैं ,
बस अपने बच्चों
को खुश देख कर
खुश हो जाते हैं ,
और उन्हें लगता है
की उनका जीवन सफल
हो गया ,
पर जब यही बच्चे                                  
माँ बाप को मान सम्मान
नहीं देते और उनकी
कोशिशों को
उनके प्यार को
"फ़र्ज़"का नाम दे देते हैं
तो उन्हें
कितनी तकलीफ होती है            
इसका अंदाज़ा शायद
बच्चे कभी नहीं लगा पाते /

रेवा


3 comments:

  1. सुन्दर भावपूर्ण रचना.

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  2. बच्चे जब खुद माता पिता बनते हैं तब जाकर समझते हैं....मगर क्या फायदा...

    सस्नेह
    अनु

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  3. दीदी प्रणाम घरेलु कार्य की वजह से बहुत दिनों बाद आया हूँ आपके ब्लॉग पर
    आपकी इस पोस्ट को देख कर सच मैं आज इस समय जी रहे बुजर्ग और सास ससुर बन चुके माता पिता इस दर्द को बखूबी जानते और समझ सकते हैं दीदी उन बच्चो में मैं भी हूँ ये नहीं की उनको कुछ ज्ञान नहीं या ज्ञान की कमी है नहीं बस आजकल कम होते शब्द ही माता पिता की मुस्किल खड़ी कर रहे हैं एक शब्द सारी 25 सालो की मेहनत पर एक कोने में रोने पर मजबूर कर देता है कुछ कहने से पहले ही बच्चे कहते है की ये सब मैं जनता हूँ क्यूँ की वो इतने लम्बे न सुनना पसंद करते हैं न बोलना हकीकत को वो रूबरू हों भी नहीं चाहते हैं वो बस मत पिता को एक फर्ज शब्द का जामा पहनाकर आगे बढने की होड़ मैं सलग्न रहते हैं पता नहीं ये कब इस दर्द और सचाई से रूबरू होंगे शयाद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी


    आप से आशा करता हूँ की आप एक बार मेरे ब्लॉग पर जरुर अपनी हजारी देंगे और
    दिनेश पारीक
    मेरी नई रचना फरियाद
    एक स्वतंत्र स्त्री बनने मैं इतनी देर क्यूँ

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