आज बहुत दिनों बाद
अपनी पुरानी डायरी खोली,
जब उसके पन्ने पलटे
तो हर पन्ने के साथ
पुरानी सारी बातें
चलचित्र की भांति
आँखों के सामने आ गए ,
उन बीते
प्यार भरे पलों को
साँसों मे महसूस करने लगी ,
उनकी खुशबू मुझे
फिर से बेक़रार करने लगी,
ऐसा लगा मानो
तुमसे अभी नयी-नयी मुलाकात हुई हो
वक़्त की धुल चाहे जितनी
पड़ जाये ,
पर एहसासों मे धुल कभी नहीं जमती .......
रेवा
अपनी पुरानी डायरी खोली,
जब उसके पन्ने पलटे
तो हर पन्ने के साथ
पुरानी सारी बातें
चलचित्र की भांति
आँखों के सामने आ गए ,
उन बीते
प्यार भरे पलों को
साँसों मे महसूस करने लगी ,
उनकी खुशबू मुझे
फिर से बेक़रार करने लगी,
ऐसा लगा मानो
तुमसे अभी नयी-नयी मुलाकात हुई हो
वक़्त की धुल चाहे जितनी
पड़ जाये ,
पर एहसासों मे धुल कभी नहीं जमती .......
रेवा
You are right Revaji.
ReplyDeleteVinnie,
'एहसासोँ मेँ धूल कभी नहीँ जमती'. यथार्थ, जो खुद का है, सही हो सक्ता है, लेकिन लेखक का. यह सामान्य और सर्वमान्य नहीँ हो सक्ता. एहसास सभी का उसके जीवनोंन्भव का परिणाम होता है. कविता क्या कहना चाहती है- निश्कर्श नहीँ निकला. डायरी के पन्नोँ मेँ अतीत खट्टा- मीठा- कडवा- सार्थक-निरर्थक् क्या है- स्पश्ट नहीँ. अतीत पर तो धूल पडना ही अच्छा, जो लौटता नहीँ और उसे याद करना अनादरित चेक जैसा है. कविता के रूप मेँ शिल्प है-कथ्य है तो स्पश्ट नहीँ, जैसे आवरण के भीतर कुछ् नहीँ हो. मंज़र-ए-आम से पहले पूरा काम कविता पर होना ज़रूरी है रेवा जी. अन्यथा न लेँ और विचार करेँ. यह मेरी व्यक्तिगत राय है, जो अन्योँ से भिन्न हो सक्ती है, लेकिन मैँ अनावश्यक् वाह- वाह करके स्रिजनधर्मी के विकास को रोकने मेँ विश्वास नहीँ करता और खामी दिखने पर उसे इंगिट करके दुरुस्त करने मेँ ज़रूरी मदद की समझ है मेरी. प्रयास लेकिन सराहनीय है.
ReplyDeleteमंगल कामनओँ के साथ,
डा. रघुनाथ मिश्र्
This comment has been removed by the author.
Deleteसच्ची बात
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति
God Bless U
बिल्कुल सच कहा है...वक़्त भी अहसासों को धूल से नहीं छुपा पाता...बहुत सुन्दर रचना...
ReplyDeleteबिलकुल नही जमती .........सुन्दर अभिव्यक्ति
ReplyDeleteएहसास ताज़ा रहते हैं...महकते हैं फूलों की तरह सदा....
ReplyDeleteसुन्दर भाव !!
सस्नेह
अनु
भावों की अच्छी अभिव्यक्ति..शुभकामनायें
ReplyDeletenice
ReplyDeleteछिपे अहसास को कितने भी शब्दों से सजा लों वो अधूरे ही लगते हैं
ReplyDeleteपर यादे ऐसी है उन्हें जितना कम याद करो तो भी वो इतने करीब रहती है कि उन्हें शब्दो की जरुरत नहीं होती
बहुत खूब रेवा
सही कहा आपने अहसासों पर धूल कभी नहीं जमती ...
ReplyDeleteडायरी सब सहेज लेती है!
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