हमने जब कुदरत से छेड़ छाड़ करी
तो हमारी जरूरत
जब कुदरत ने उत्तर दिया
तो वो निर्मम ,
हमने नदियों को बांधा
उनका रुख मोड़ने की कोशिश की
तो हमारी जरूरत
जब वहीँ नदियों ने उफन कर
बाढ़ का रूप ले लिया
तो वो निर्मम ,
हमने पहाड़ों को खोखला
कर दिया
तो हमारी जरूरत
उन्ही पहाड़ों ने जवाब दिया
तो वो निर्मम ,
पेड़ों को काट काट धराशाई किया
तो हमारी जरूरत
मौसम ने जब अपने दिखाए
तो वो निर्मम
वाह रे इंसान यहाँ भी बस अपने बारे मे सोचा
इसलिए शायद आज इस दशा के लिए हम ही जिम्मेदार हैं
रेवा
achhee rachanaa hai achaa likhaa
ReplyDeleteजरूरतें पूरी हो गई
ReplyDeleteबची-खुची भी हो जाएगी
शिव जी का तीसरा नेत्र खुल चुका है
मनमोहन दान माँग रहे हैं
आपदा-पीड़ितों के लिये
अथवा सरकार बचाने के लिये
सब दिख रहा है शिव जी को
उनको तो शिव जी से ही माँगना था
वो तो औघड़ दानी हैं
सच्चे दिल से माँग लें
माँग कर तो देखें.....
गर भक्ति सच्ची हो तो
मृत भी जीवित हो जाएँगे
सादर
रीवाजी,
ReplyDeleteआप ने अपनी कविता,"इस दशा के लिये हम ही जिम्मेदार हैं "में बिलकुल ठीक सन्देश दिया है।जब मानव किसी बात की अति कर देता तो प्रकृति उस से बदला लेती है ।जिस का सामना कोई नहीं कर सकता।
समय मिलने पर मेरे ब्लोग 'Unwarat.com' पर जाइये एंव मेरी दो नई रचनायें पढ़िये--
१-मुश्किल का सामना कैसे करें?
२-रोमांचक सस्मरण,
आशा आप के लिये उपयोगी होगी।
पढ़्ने के बाद अपने विचार अवश्य व्यक्त करें।
विन्नी
सही कहा आपने .......
ReplyDeletebahut khoob likha :)
ReplyDeleteबे-मिसाल
ReplyDeleteसार्थक सामयिक अभिव्यक्ति
हार्दिक शुभकामनायें
अपने कर्मों का फल तो मिलना ही है...बहुत सार्थक अभिव्यक्ति...
ReplyDeletesarthak prastuti
ReplyDeleteबिलकुल सही लिखा है आपने। हमारे स्वार्थ ने ही ये विध्वंस की लीला रची है .. अब अगर न जागें तो जाने क्या होगा!
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