गृहणी को किस मिट्टी से
गढते हैं भगवान ?
उसका अपना कुछ भी क्यों नहीं होता ?
न उसकी इच्छा, न उसका मन
जब जिसका जैसे मन होता है
वो उस के साथ वैसा ही बर्ताव करता है ,
अगर पति का मन अच्छा नहीं
ऑफिस मे कुछ हुआ या फिर
और कोई बात हो तो ,
झेलना पत्नी को है
उसकी कडवी बातें और ख़राब मूड दोनों ,
अगर बच्चों का मन अच्छा नहीं तो
झेलना माँ को है ,
अगर सास ससुर को कुछ नागवार गुजरा तो
झेलना बहू को है ,
इन सब मे उसका अपना मन
अपनी इच्छा कुछ मायने रखती है क्या ?
बस खुद को एक अच्छी पत्नी, माँ और बहु
साबित करती रहे ज़िन्दगी भर,
और खुद को भूल ही जाये
तभी ये जीवन चल सकता है सुख शांति से ,
सदियाँ गुजर गयी
इक्कीसवी सदी के हैं हम लोग
पर एक गृहणी अभी भी वहीँ की वहीँ ,
गृहणी को किस मिट्टी से
न उसकी इच्छा, न उसका मन
जब जिसका जैसे मन होता है
वो उस के साथ वैसा ही बर्ताव करता है ,
अगर पति का मन अच्छा नहीं
ऑफिस मे कुछ हुआ या फिर
और कोई बात हो तो ,
झेलना पत्नी को है
उसकी कडवी बातें और ख़राब मूड दोनों ,
अगर बच्चों का मन अच्छा नहीं तो
झेलना माँ को है ,
अगर सास ससुर को कुछ नागवार गुजरा तो
झेलना बहू को है ,
इन सब मे उसका अपना मन
अपनी इच्छा कुछ मायने रखती है क्या ?
बस खुद को एक अच्छी पत्नी, माँ और बहु
साबित करती रहे ज़िन्दगी भर,
और खुद को भूल ही जाये
तभी ये जीवन चल सकता है सुख शांति से ,
सदियाँ गुजर गयी
इक्कीसवी सदी के हैं हम लोग
पर एक गृहणी अभी भी वहीँ की वहीँ ,
गृहणी को किस मिट्टी से
गढ़ते हैं भगवान ?????
रेवा
रेवा